Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१ ) भावार्थ हे पिता श्री ! रात दिन रूप जो अपूर्व समय जा रहा है, वह लौट कर कभी भी पीछा आनेका नहीं है। ऐसा समझ कर ज्ञानी जन धार्मिक काय्यौमें समय बिता रहे है उन का जन्म व समय सार्थक हैं । अत एव पेसा अपूर्व समय जान कर अब हम हमारा समय निष्फल नहीं जाने देंगे. आप हमे धर्म करते हुवे न रोके || २५ | मुल- एमओ संवसिता पं. दुहत्र सम्मतसंजुया । पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २३ ॥ छाया - एकतः समुष्य द्वये सम्यक्त्वसंयुताः । " पश्चाज्जातौ गमिष्यामो भिक्षमाणाः कुले कुले ॥ २६ ॥ अन्वयार्थ - (जाती) हे पुत्रों ! ( द्वये ) तुम दोनों हम दोनों (एकत: ) एक जगह ( समुष्यः ) निवास कर ( सम्यक्त्वसंयुताः ) सम्यक्त्व सहित होवे पश्चात् ) फिर (कुले कुले) घर घर में ( भिक्षमाणाः ) भिक्षा करते हुए ( गमिष्यामः ) पर्यटन करेंगे || २६ ।। 1 भावार्थ हे पुत्रों ! तुम दोनों भ्राताओं और हम दोनों तुम्हारे मात पिताओं एवं चारों ही अभी हाल एक ही स्थान में सम्यक्त्व सहित गृहस्थावास में निवास कर यथा शक्ति अपन धर्मोपार्जन करें । फिर वृद्धावस्था आने पर मुनिवति ग्रहण कर उच्च कुलोंमें निर्दोष आहार पानी की भिक्षा करते हुए देशाटन करेंगे | २६ ॥ मूल- जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वत्थि पलायणं । जो जाइ न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ||२७|| For Private And Personal Use Only

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