Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यों को देखा है, वे तो प्रत्यक्ष मोक्ष दाता ह ; पिताजी. यह संसार तो स्वार्थी है ; अब हम इस संसार के स्वार्थी जनों में रहना नहीं चाहते ; अब आप हमें तो साधु बनने की आज्ञा प्रदान करिये । " पुरोहित बोला:-"पुत्रों ! कुछ सोचो , विचारो; बोलने में इतनी जल्दी मत करो। तुम अभी अबोध बालक हो, कोमल अवस्था है, बुद्धि परिपक्क नहीं, संसार सुख देखा नहीं, श्रभी तुम गृहस्थाश्रम में प्रवेश हुए नहीं. संसार के सुखों का अनुभव किया नहीं। तुम्हारी अवस्था अभी विद्या प्राप्त करने की है इस के पीछे युवावस्था हो जाने पर गृहस्थी बनकर विषय सुखको भोगो फिर सन्तानादि हो जाने पर यदि साधु बनना चाहो तो साधु बन जाना।" लड़कों ने कहा:-" पिताजी ! पौगालिक सुख तो क्षणमात्र के हैं. इसके बाद वही व्यवस्था है। जैसे किसी तलवार की धारा पर शहद बिन्दु चाटने का कुछ थोड़ासा सुख है पर फिर अन्त में जीभ कट जाने का महा भयं. कर दुख होता है। इस लिये ऐसे सुखों पर हमारी इच्छा कदापि नहीं, हम तो उसी सुख की चाहना कर रहे हैं जिस मे लवलेश ..मात्र भी दुखकी संभावना न हो।" निदान भगु पुराहित न अपने पुत्रों को भोगोपभोगों के नाना प्रकारके सुख और संयम की कठिनता दिखाई पर पुत्रों ने एक न मानी और साधु बन ने की दृढ प्रतिज्ञा करली । भृगु पुरोहितने अपने पुत्रों की हद प्रतिज्ञा साधु बन ने की देखी तो उसे मोह के कारण सारा संसार अन्धकार मय दिखाई पड़ने लगा और सोचने लगा कि इतनी भारी. धन सम्पति होने परभी संतान सुख प्राप्त नहीं होगा तो यह धन किस काम का होगा और हृदय दुख से जलता रहेगा । इन पुत्रों को सब तरह से समझाया पर ये साधु हुये बिना न For Private And Personal Use Only

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