Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ) च्युत' ब्राह्मणों को (भुक्ता) जिमाने से (तमसा) अज्ञान कर के (तमः) अधोगति को (नयंति) प्राप्त होते हैं (च) और (पुत्राः ) पुत्र (जाताः) होने से (नाणं) शरण (न) नहीं (भवन्ति ) होते हैं तब (कः) कौन (नाम ) ऐसा (ते) तुम्हार (एतत्) ये 'वाक्य' (अनुमन्येत्) मान सकता है ॥१२॥ .. भावार्थ हे पिता श्री ! केवल वेद शास्त्रों (ज्ञानशा. स्त्रों) को पढने से वेद शरण भूत नहीं होते हैं। क्योंकि केवल पढने मात्र ही से क्या ! वेद पढने के बाद सत्य कर्मों में प्रवर्ती करें । उसी के वेद पढना इस भव परभव में शरण भूत हो सकता है । इसी प्रकार श्रीमद्भागवत के ७ चे. स्कन्ध के ग्यारहवें अध्याय के २१ वे श्लोक और श्री. मद्गीता के अठारवें अध्यायके ४२ वे श्लोक से विमुख अगुओं को धारण करने वाले, ब्रह्म पथ से पतित , व्यभिचारी, अ. सत्यवादी, अनेक असदगुणों का भण्डारी, केवल नाम मात्र के ब्राह्मणों को भोजन खिलाने से परलोक में त्राण (शरण । तो दूर रहे पर अशान कर के अन्धकार के स्थानको प्राप्त होते हैं । और न कोई पुत्र परलोक में त्राण शरण हो सकते हैं। तब कौन ऐसा मूखे है जो भोगीपभोग के लिये प्राप के ये वाक्य माने ॥ १२॥ मूल-खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।। १३ ।। For Private And Personal Use Only

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