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(२७)
मूल-सोयरिंगणा पायगुर्णिधणेणं,
मोहाणिला पन्जलणाहिएणं । संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥ १०॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणंतं, निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहकम कामगुणेहि चेब,
कुमारगा ते पसमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ छाया-शोकामिनात्मगुणेन्धनेन, मोहानिलादधिकमज्वलेन । संतप्तभावं परितप्यमानं, लालप्यमानं बहुधा बहु च ॥१०॥ पुरोहितं तं कमशोऽनुनयन्तं, निमंत्रयन्तं च सुतौ धनेन । यथाक्रमं कामगुणैश्चैव,कुमारको तौ मसमीक्ष्य वाक्यं(कचतु)११
अन्वयार्थ-(प्रात्मगुणेन्धमेन) प्रान्मा के गुण रूप इन्धन (मोहानिलात्) माह रूप हवा (अधिकप्रज्वले) 'द्वारा' प्रज्वलित (शोकाग्निना) शोक रूप ममि से (संतप्तभावं) सन्ताप्तभाव हुए है ऐसा (परितप्यमानं) परिशास पाता हुआ (बहुधा) बहुत प्रकार के (बहु) बहुत से (लालप्यमानं) लालच (क्रमश:) क्रम से (सुतौ) पुत्रों को (अनुनयन्तं) जिताता हुआ (यथाक्रम) यथाक्रम (धनेन) धन कर के (च) मौर (कामगुणैः) स्त्रीभाग कर के (एव) निश्चयार्य ( निमन्त्र
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