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(३०) छाया-क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखाः,
प्रकामदुःखा अनिकामसौख्याः। संसारमोक्षस्य विपक्षीभूता,
खानिरनर्थानां तु कामभांगाः ।।१३।। अन्वयार्थ-(कामभोगाः) काम भोग (तु) पद पूणार्थ (क्षणमात्रसौख्याः ) क्षणिक सुख वाले (बहुकालदुःखा) बहुकाल तक दुःख देने वाल हैं (प्रकामदुःखाः) 'भोगों में' उत्कृष्ट दुःख है (अनिकामसौख्याः) किंचिन्मात्र सुख (संसारमोक्षस्य) संसार से निवर्तन होने को (विपक्षीभूताः) ये भोग' वैरी के समान (अनर्थानां) अनर्थों की (खानिः ) खदान है ॥ १३ ॥
भावार्थ-हे पिता श्री ! ये काम भोग क्षण मात्र के सुख देने वाले हैं। फिर उन के परिणाम अन्त में बहुत ही दुखदायी होते है । इन में किसी प्रकार का मुख न समझे, जैसे कहां ती पर्वत के समान दुःख और कहां बिचारा कंकर के समान पोद्गलिक सुख है। हम तोहे पिता ऐसे सुखों पर न रीझेगे । क्योकि वह थोड़ा सा सुख भी सम्पूर्ण मोक्ष के सुखों का वैरी है । और संसार में जितने भी परिभ्रमण करने के कारण हैं वे सभी इसी काम भोग रूप मान ही में से निकलते हैं ॥ १३ ॥ मूल-परिव्ययंते अणियत्तकामे,
अहो.य राम्रो परितप्पमाणे ।
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