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( १४ ) की करतूति का परिचय मिला और सब पिछले भवों की बात से परिचित हो कर झाड़ से नीचे उतरे। तदनु साधुओं के पास पाकर बोले- स्वामिन् श्राप के भय से इतनी देर छिपे हुए थे। अब हमें ज्ञान हो चुका कि आप छः ही काया के जीवों के रक्षक हैं और साथ मोक्ष दाता भी हैं। संसार असार है। कोई किसी का नहीं। कौटुम्बिक जन सब स्वार्थी हैं । किये हुए कर्मों का फल श्राप ही अकेला भोगता है दूसरा कोई भी नहीं भोगता। अत एव हे स्वामिन् ! माता पिता को पूछ कर श्राप के पास मौनवृत्ति साधुवृत्ति ग्रहण करेंगे, ऐसा कह कर घर की ओर श्राने लगे। उधर बच्चों के मा बाप इन को ढूंढने के लिये इधर उधर पुकारते हुए फिर रहे थे। इतने ही में आते हुए दोनों बच्चों को देख जोर से पुकारा-" अरे भो पुत्रो ! दौड़ कर जल्दी आओ श्राज गांव में बला श्रागई थी"। पूत्रों ने कहा "क्यों, कैसी बला" । पिता ने कहा-'' जो मैं तुम्हे हमेशा सायंकाल को उन बाल घातको का चिन्ह बताता था, वे आज इस गांव में भी श्रा निकले. क्या तुम्हे बे मिले तो नहीं"? पूत्रों ने कहा--" वे तो मिल गये"।" पिता ने पूछा." अरे ! उनकी बात कुछ मानी तो नहीं । पुत्रों ने कहा-" मान ली" पिता ने पूछा-" अरे ! क्या मानी " । पुत्रों ने कहा-" साधु बनने की बात ठान ली"। पिता ने कहा-" अरे पुत्रो ! तुम्हे उन साधुअोने मधुर शब्दों से तुम्हे जाल में फंसा लिया है, पर ये लोग पहले तो ऐसाही करते हैं फिर समय पाकर उनका गला घोट देते है "लडकोने कहा-"बस, बस, पिता रहने दो अब प्रापकी इन मिथ्या वातों को रहने दीजिये, हम आपकी बात अब न मानेगे; आपने साधुअोके विषय में जो बाते बताई हैं । इन साधुओ में नहीं है। हमने आखों से देखा इन साधुओं के
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