Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) हार, पानीसे यहीं भरदो ताकि पर्याप्त आहार पाने से और घरों में नहीं भटकेंगे, नहीं तो आहार पानी के लिये इधर उधर अन्य घरों में भटकते हुए कहीं पुत्र न मिल जाय । बस इसी अभिप्राय से पुरोहित बोला-" महाराज! यहां पधारो, यह ब्राह्मण का घर है"। तब वे दोनों साधु वहां गये । दही, दूध, रोटी और धोवन पर्याप्त उन्हें बहरा कर पुरोहित बोला-" महा. राज! अब और घरों में मत फिरिये यदि कुछ कमी हो तो यहां से और ले लीजिये क्योंकि मेरे दो पुत्र घड़े कुपात्र और क्रोधी हैं, साधु, सन्तों को देख कर उनके कपड़े फाड़ डालते है । उन पर पत्थर फेंकते हैं। यदि उनके पास लकड़ी हो तो उसने मारते है। गालियां देते हैं। ऐसे अनेक तरह से कष्ट पहुंचाते है अतः श्राम रास्ता छोड़ कर किसी एक गली के रास्ते से निकल आप जंगल में जाकर वहां भोजन करना। गांव में कहीं न ठहरना"। पुरोहित के कहने से वे दोनों साधु गली के रास्ते से जंगल की ओर प्रस्तान कर रहे थे तो जिस गली से जा रहे थे उसी में श्रागे दोनों बालक खेल रहे थे। यकायक उन साधनों पर बालकों की दृष्टि पड़ी तो चमक कर एक ने कहा-" अरे भ्राता! यशोभद्र ! दौड़ो २ भागो भागो। आज मौत की निशानी श्रा गई है । पिता ने जो चिन्ह बताये थे उन्हीं चिन्हों से चिन्हित बाल घातक श्रा रहे हैं। दोनों लड़के रास्ता दूसरा न होने से अपनी जान ले जंगल की और भागे जा रहे थे । साधु स्वाभाविक ही उनके पीछे पीछ जा रहे थे। लड़कों ने भागते हुए पीछे की ओर देखा तो जान पड़ा कि वे साधु उन्हीं की ओर जल्दी २ आ रहे हैं । इस से लड़कों ने सचमुव ही जान लिया कि ये साधु अपनी तरफ ही अपने को पकड़ने के लिये पा रहे है। ज्यो ज्यो उन्हें पास पाते देखत त्यों २ बच्चों की जान अधिक हैरान होने लगती थी। For Private And Personal Use Only

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