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(१३ ) इधर दौड़ते २ थक गये तब एक घड़ के झाड़ पर जो समीप ही था उस पर जल्दी से चढ़ गये और पत्तों की आड़ में अपने को छिपा कर बैठ गये और एक दूसरे से कहने लगे "भाई ! खांसना मत, चुपचाप यहां छिपे रहो, जब ये बाल घातक यहां से आगे चले जावेंगे तब अपन यहां से नीचे उतर कर चले चलेंगे। उधर दोनों साधु नीची दृष्टि से देखते हुए उसी वट वृक्ष के नीचे आकर आपस में कहने लगे कि यह जगह ठीक है, अतः श्राहार पानी यहीं खा, पी लो । उन लडको ने यह सुना कि इन को यहीं मार कर भागे चलो। बस फिर क्या था, वे बच्चे और भी अधिक थर २ कांपने लगे। उन साधुओं ने पात्र खोलने की चेष्टा की तो लड़कों ने जाना कि इन्होंने अपन को देख लिया है जिस से ये पात्रों में से मारने के लिये चाकू, छुरी आदि निकाल रहे हैं। आगे पात्र खोलने पर दूध, दही, रोटी आदि नजर आई तब बच्चों ने विचार किया कि पात्रों में से चाकू छुरी तो निकली नहीं इनके बजाय दूध, दही, रोटी निकली जो कि ऐसी अपने घर सा कर आये है हो न हो ये चीजें सब अपने घर की ही मालूम होती है।
इतने ही में गुरू ने शिष्य से कहा-"बेटा, ध्यान रखना. यहां कीड़ियां बहुत है"। कुछ ही देर पीछे बोले-" देख २ यह कीड़ी पांव नीचे न पा जावे, इसे बहुत आसानी से पूंजनी से दूर करो"। इस प्रकार का दृश्य उन दोनो लड़कों ने ऊपर से देख कर हृदय पर हाथ घर विचार किया कि ये साधु कोड़ी तक को तो मारते ही नहीं तो फिर ये बालहत्या कैसे करेंगे । इस से स्पष्ट मालूम होता है कि जो पिता ने हम को कहा था वह असंभव सा प्रतीत होता है । ऐसा बिचारांश करते ही उन लड़कों को जाति स्मरण ज्ञान हो पाया। उस समय ज्ञान के द्वारा अपने पिता दी
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