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( २० ) अन्वयार्थ-(केचित्) कई एक (पूर्वस्मिन्) पहिले (भवे) जन्म में (एकविमानवासिनः) एक विमान में रहने वाले (देवाः) देव (भूत्वा) हो कर 'तदनु वहां से' (च्युताः) पतन को प्राप्त हो (पुरा) पूर्व जन्म में (कृतेन) किये हुए (स्वकर्मशेषेण ) अपने कर्म के अवशिष्ट अंश से (ख्याते) सुप्रसिद्ध (समृद्धे) समृद्धिशाली (सुरलोकरम्ये ) स्वर्ग के समान रमणीय (इतुकारनाम्नि ) इत्कार नामक (पुराणे) प्राचीन ( पुरे) नगर में (ते) वे (उदग्रेषु ) ऊंचे कुलेषु ) कुलों में (प्रसूताः) उत्पन्न हुवे (संसारभयात् ) संसार के भय से (निविणाः) उद्वेग पा कर (हित्वा) 'संसार का' परित्याग कर (जिनेन्द्रमार्ग ) जिनेन्द्र के मार्ग की (शरणं) शरण (प्रपन्नाः ) प्राप्त हुए ॥ १ ॥२॥
भावार्थ-कई एक जीव पहले जन्म में एक ही पद्मगुल्म नाम के विमान में अपनी आयुः पूर्ण कर पूर्व भव के संचित शुभ कर्म के रहे हुए शेष भाग ले सुरलोक के सदृश मनोहर प्रसिद्ध धन धाग्य आदि ऋाद्धे युक्त इतुकार नामक नगर में प्रधान कुल में उत्पन्न हुए। तदनु कुछ समय के बाद सहरु के सद्वोध द्वारा संसार के जन्म मरण प्राधि दुःस्त्रों से भयभीत हो कर जिनेन्द्र भगवान के प्ररूपित मार्ग के शरण को प्राप्त हुए ॥ १ ॥२॥
मूल-पुमत्तमागम्म कुमार दोऽवि, . पुरोहियो तस्स जसा य पत्ती ।
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