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विसालकित्ती य तहे सुयारो,
रायऽथ देवी कमलावई य ।। ३ ॥ छाया-पुंस्त्वमागम्य कुमारौ द्वापि, पुरोहितस्तस्य यशाश्च पनी । विशालकीर्तिश्च तथेक्षुकार-राजान देवी कमलावती च ।।३।।
अन्वयार्थ-(अत्र यहां पर (पुंस्त्वम् ) पौरुष्य पन (भागम्य) प्राप्त हुए (द्वौ) दोनों (अपि) प्रधानता सूचक (कुमारी) कुमार (पुरोहितः) • तीसरा' पुरोहित (च) और 'चौथा (तस्य)उसकी (पत्नी) औरत (यशाः) यशा नाम वाली (तथा) तैसे ही 'पांचवा' (विशालकीर्तिः) विस्तीर्णकीर्ति वाला (इतुकारः) इक्षुकार नामक (राजा) नरंश (च) और 'छट्ठा' (देवी) राणी (कमलावती) कमलावती नाम की हुई ॥३॥ ___ भावार्थ-छः पुरुष यथा शक्ति धर्म क्रिया कर एक ही स्वर्ग के एक ही विमान में छः ही देवता हुए थे। वहां वे अपना २ श्रायुः पूर्ण कर उन छओं में से एक देव यहां इतुकार नाम के नगर में इक्षुकार नामक नरेश हुया । और दुसरा एक देव इसी राजा के. कमलावती राणी हुई। तीसरा एक देव इसी नगर में भृगु नामक राज्य पुरोहित हुश्रा । और चौथा एक देव इसी पुरोहित के यशा नाम वाली औरत हुई । और दो देव राज्य पुरोहित के पुत्र पने श्राकर हुए ॥ ३ मूल-जाईजरामच्चुभयाभिभूया,
बहिविहारामिनिविठ्ठचित्ता ।
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