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साप अमर होकर आये हैं ? श्राप जैसे अनेक राजा इस भ मण्डल पर चक्रवर्ती होकर अन्त इस नश्वर शरीर को छोड़ कर चल बसे! यह पृथ्वी, यह वैभव, यह हकूमत, यह राज भण्डार, यह हाथी-घोडे आदि सब वैभव यहां का यहीं रह गया कोई भी प्यारा बन्धव, स्नेही, मित्र , सेना, शत्रु साथ में न चला! यदि आपने इन सब ठाट पाट, सुख-चैन, वैभव को न छोड़ा तो एक दिन ऐसा आवेगा कि जब ये सब स्वयं ही
आप को छोड़ देंगे। तब आप स्वयं ही राज्य सुखों को छोड़ मोक्ष जानेका प्रयत्न क्यों न करें।" इतना सुनते ही राजाको भी वैराग्य हो पाया और वैराग्य अवस्था में श्राकर अपने पुत्र. को राज्य भार सौंप दिया और श्राप स्वयं रानीको वैराग्य की आज्ञा दे कर संयमी बनाई । तदनु राजा और रानी पुरोहित और पुरोहितानी, दोनों बालक ये छःओं ही व्यक्ति संयम धारण कर अनेक जन्म जन्मातर के किये हुए पापों को तपवत से भस्म कर मोक्ष चले गये । इति शम्
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