Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) हम तुमको समझा चुके ।" ऐसी बात सुनते ही डरसे दोनों पुत्र लपक कर माता पिता की छाती से चिपट गये और थर थर कां. पते हुए रोते रोते बोले कि." हे पिताजी ! गांव बाहरतो दूर रहा पर घरसे बाहर तक भी हम नहीं निकलेंगे।" पिताने समः झाया-" नहीं २ पुत्रो, इतने अधीर नहीं होना चाहिये प्रथम तो ऐसे विपिन में वैसे साधु आवेंगे ही नहीं यदि आवे तो ध्यान रखना उनके पास जाना मत और दौड़ कर अपने घर के भीतर चले पाना । और इस बातका पूरा ध्यान रखना। पिताकी इस शिक्षा को मानकर दोनों बालक घर के पास पास ही खेलते थे और दूर न जाते थे। __ कुछ दिन बीतने पर उसी जंगल में होकर दो साधु किसी नगर की जा रहे थे, परन्तु वे वहां रास्ता भूल कर विपथ में इधर उधर भटकने लगे । शिष्य ने कहा-“गुरूजी ! मध्यान्ह का समय पा रहा है, प्यास बहुत जोर से सता रही है, अतःऐसा कोई उपाय करें जिल से गांव पास आने पर तक आदिकी 'या. चना कर चित्तको शान्त्वना दें"गुरूने कहा-" क्या करें, अशन रास्ता भूलगये, अब ऐसा करो कि उस टेकरी पर चढ़ कर श्रास पास देखो कोई गांव निगाह पड़े तो वहां चले।" पेसाही किया कुछ दूरी पर एक छोटासा गांव दिख पड़ा । उसी गांव में भगु पुरोहितभी रहता था। वे दोनों साधु बहां से चलकर उसी गांव में आये और उत्तम घरकी शोध करते २ पुरोहित के घर के पास ही श्रा निकल । उन पाये हुए साधुओं को देखते हो पुरोहितकी अांखें चढ़ (गई और मनही मन कहने लगा-अरे इस छोटेसे गांव में भी यह लोग आ गये ! इसको भी इन्होंने नहीं छोड़ा इनके दुःख से तो शहर छोड़कर यहां आये । यहां पर भी ये यम आ खड़े हुए। खैर अा गये तो इनके पात्र प्रा. For Private And Personal Use Only

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