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भीलों की झोंपड़ियों के बीच एक मकान बन्धा लिया । वे उस जं. गल के मकान में निर्विघ्नता के साथ आनन्द में पुत्रों के साथ जीवन व्यतीत करने लगे। पुरोहितजी पुत्रों को शिक्षा स्वतः देने लगे। पुरोहित के हृदय में कभी २ यह भी तरंग उठती रहती थी कि कदाचित् वैसे साधु भूले भटके इधर न चले आवे, उन साधुलोगों को देखते ही कही ये बालक साथ न चले जावे. इस लिये उन साधुओं का भयंकर विपरीत परि. चय पुत्रों को दिखा देना अनुचित न होगा। ऐसा विचार कर वह पुरोहित सन्ध्या समय उन दोनों पुत्रों को समझाने लगा:" पुत्रों ! मेरी एक बात जरूर ध्यान में रखना नहीं तो कभी मार जाओगे" पुत्रोंने कहा:-" पिताजी ! वह कौनसी ऐसी भयानक बात है हमें अवश्य उस बातसे परिचय करादीजिये" तब पिताने कहा:-'पुत्रों ! तुम लड़कों के साथ आश्रो, जाश्रा, खेलो. कूदो, कोई हानि नहीं, परन्तु उन लोगों का संग मत क. रना जो कि मुंह पर एक कपड़ा पाहने हुए होते हैं, हाथ में एक कपड़े की झोली होती है उस में पात्र रखते हैं. पात्रों में चाकू, छुरी, कतरनी, तमंचे रखते हैं। जब वे चलते हैं तो नीची नि. गाह करते हुए चलते हैं । यदि कोई बालक उनके निगाह में अाता हैं तो पहिले वे उस बच्चे से बड़े प्यार से मधुर स्वरसे बो. लते हैं। और मिष्ट पदार्थ आदि के खाने का प्रलोभ भी दिखाते हैं इस से वही बच्चा उन के पास चला जाता है फिर वे नामधारी साधु उन्हें धोखा देकर जंगल में ले जाते हैं और वहां उन बालकोंके शरीर परका पहना हुअा अाभूषण उतार कर उन्हें मार डालते हैं । सो तुम सावधान रहना । पुत्रों ! हमने तो तुम्हें चता दिया है यदि इस उपरान्त भी तुम उन लोगों के पास चले ही गये तो अवश्य ही मारे जाओगे, इस में हमारा कुछ दोष नहीं,
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