Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस घर में संतान नहीं वह घर सूना सा दिखाई पड़ता है। गृहस्थी को चाहे जितना कष्ट हो पर संतान हो तो उसे कष्ट नहीं सताता। वह दुःखो को संतान के सामने तुच्छ समझता है। बेचारी भृगु पत्नी इस बात से और भी अधिक दुःखी थी कि उसे सब बन्ध्या कह कर पुकारते थे और प्रातःकाल में उस का मुँह तक नहीं देखते । इसी चिन्ता में उन दोनों प्राणियों के रात दिन बीतने लगे। इधर उन दोनों देवों का प्रायुष्य पूर्ण होने को था. उन्हों ने परस्पर विचार किया कि अपन लोग यहां देव हुए इस का मुख्य कारण यह है कि पिछले भव में मोक्ष के लिये संयम धारण किया था, अत एव अपन लोगों को भविष्य भव में भी संयम लेना उचित है, पर यह तो बिचार करो कि यहां से मर कर कहां जन्म लेंगे। उन्हों ने अवधि ज्ञान के द्वारा जाना कि ईक्षुकार नाम की नगरी में भृगु नाम के राज्य पुरोहित के घर जन्म लेंगे । पुत्र की लालसा में प्राकर माता पिता सद्धर्म के कट्टर विरोधी बन अपने को धर्म से विमुख करेंगे। इस से तो यह अच्छा होगा कि पाहले वहां जाकर उन्हें स्पष्ट कह दें कि तुम्हारे पुत्र तो होंगे पर वे संयम लेंगे, अतः उन्हें रोकना मत । ऐसा उनसे बचन ले आवें । ऐसा बिचार कर दोनों देव मृत्यु लोक में उतरे और साधु वेष धारण कर भृगु पुरोहित के यहां श्राहार पानी लेने के बहाने से आये। इन श्राते हुए साधुओं को देख पुरोहित मन में बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने को धन्य समझने लगा कि आज ऐसे महापुरुषों का मेरे घर पर आगमन हुआ। पुरोहित ने साधुओं के चरण स्पर्श किये और बोला-"स्वामी पधारिये, पाप ने बड़ी कृपा करी, मेरा घर पवित्र किया, आज आप इस सेवक के हाथ से भोजन ग्रहण करें"। ऐसा कह कर उन दोनों साधुओं को भोजनालय में For Private And Personal Use Only

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