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ग्रंथांक
पूर्णता
पित नाम (पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम
(पातासंघवी) पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार संघवी पाडानो भंडार स्थिति प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र
क्लिन/ओरिजिनल
डीवीडी (डीवीडी- भाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य
झो.पत्र/झे.पत्र)
कृति प्रकार माणिक्यचन्द्रसूरि सं........ | श्लोक ५५७४
तेपि ब्रह्मादयो यस्य पद्य
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कर्ता
शान्तिनाथचरित्र महाकाव्य (पे.२) शान्तिनाथचरित्र द्वितीय भाग
(पे. पृ. १५९-३१६) पे.वि. : ग्रन्थान-५५००. E/३१५मुं पत्र तूटी गयुं छे, वचमां कोईक पत्र भुसाई गयुं छे...
: माणिक्यचन्द्रसरि सं.
श्लोक ५५७४।
: तेपिब्रह्मादयो यस्य
शान्तिनाथचरित्र महाकाव्य उत्तराध्ययनसूत्र आदि (पे.१) उत्तराध्ययनसूत्र
श्रेष्ठ
संपूर्ण
कागज
वि. १३८१.२६२
सजागाविप्पमुक्कस्य
२९/४८(४७)........ संयुक्त प+ग
(जनो नं. ९१(१-२ कागळमां.
सुधर्मास्वामी
(पे.पू. १-१५९)
अध्याय ३६ ग्रं. २०९५ श्लोक/
(पे.पृ. १५९-१६२). (पे.पृ. १६२-१९०)
(पं.२) सामुद्रिकशास्त्र (पे.३) वन्दनफल-गणघरवाद-श्रावकव्रतभंगउत्तराध्ययन सुभाषित विगेरे वन्दनफल आदि जीतकल्पसूत्र सह स्वोपज्ञ भाष्य
५८-१
२९/४८(८७)
१७७-४८(१थी ४८)=१२९
(जुनो नं. ४०६)पुण्यविजयजी द्वारा संपादित मुद्रित प्रत की तुलना में इस प्रत में मूल व भाष्यगाथाक्रम कम है. इनकी प्रस्तावना से स्पष्ट होता है कि पुण्यविजयजी ने इस प्रत का उपयोग संपादन में नहीं किया है. आद्यन्त भाग अपूर्ण. मूलगाथा-८ से मिल रही है. हस्तप्रतसूचीओमां जीतकल्प, यतिजीतकल्प अने :आवकजीतकल्पमा घणी वखत परस्पर अस्पष्टताओ रहेल छे.
जीतकल्पसूत्र
प्रा.
:कयपवयणप्पणामों वोच्छ: पद्य
जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण
गा.१०५ ग्रं. १३०
जीतकल्पसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य
जिनभद्र गणि
प्रा.
:गा.२६०६
:पय
पवयण दुवालसङ्गं सामा
५८-२
श्रेष्ठ
ताडपत्र
सन्मतितर्क वृत्ति-अपूर्ण सन्मतितर्कप्रकरण-तत्वबोधविधायिनीवृत्ति
१८८-२(१ थी २:१८६.... २९/४८(१६०)....... (जुनो नं. ३६०)वटक-अपूर्ण
अभयदेवसरिसं
गं. २५000
गद्य
पञ्चाशक सूत्र
श्रेष्ठ
:संपर्ण
ताडपत्र
:(जुनो नं.२११(१))
२९/४८ नमिऊण वद्धमाणं सावग: पद्य
पञ्चाशकप्रकरण
हरिभद्रसूरि
प्रा.
पञ्चाशक-१-१९.
अध्याय १९ गा. १००० ग्रं. ११८२