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ग्रंथांक
४३२
६ ४३४
४३५
४३८
४३९
४४०
४४१
४४३
प्रत नाम
(पेटा नंबर), पेटा नाम कृति नाम
शब्दभेदप्रकाश नाममाला-वृत्ति रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्य
तिलकमञ्जरीटिप्पन
तिलकमञ्जरी टीप्पण चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र
व्यवहारसूत्रावचूरि व्यवहारसूत्र - अवचूरि
व्यवहारसूत्र
स्थिति
कर्ता
ज्ञानविमल
श्रेष्ठ
पदमसुन्दर
श्रेष्ठ
शान्तिसूरि श्रेष्ठ
श्रेष्ठ
सौभाग्यसागरसूरि
श्रेष्ठ
भद्रबाहुस्वामी
चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति श्रेष्ठ
व दृष्टान्तकथा
चैत्यवन्दनभाष्य
देवेन्द्रसूरि
धर्मघोषसूरि
चैत्यवन्दनभाष्य-सङ्घाचारटीका
चैत्यवन्दनभाष्य-कथा
चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति श्रेष्ठ
व दृष्टान्तकथा
चैत्यवन्दनभाष्य
देवेन्द्रसूरि
धर्मघोषसूरि
चैत्यवन्दनभाष्य-सङ्घाचारटीका
चैत्यवन्दनभाष्य-कथा
चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति श्रेष्ठ
(पुत्रे) मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी आदि कृत प्रेस कॉपिओनी झेरोक्ष पूर्णता
प्रत प्रकार
प्रतिलेखन वर्ष
पत्र
भाषा
सं.
अपूर्ण
सं.
संपूर्ण
सं.
संपूर्ण
प्रा.
संपूर्ण
सं.
संपूर्ण
प्रा.
अपूर्ण
प्रा.
सं.
प्रा.
अपूर्ण
प्रा.
सं.
प्रा.
संपूर्ण
परिमाण
ग्रं. ३७००
कागज
हस्तप्रत
श्लोक १०५०
हस्तप्रत
ग्रं. १८३१
हस्तप्रत
हस्तप्रत
ग्रं. ६८८
हस्तप्रत
गा. ६३
ग्रं. ७८०८
हस्तप्रत
गा. ६३
ग्रं. ७८०८
हस्तप्रत
रचना वर्ष वि. १६५४
वि. १९५८
वि. १३०९
297
आदिवाक्य
श्रीमन्तं भगवन्तमन्व २१
स श्रीमान्नाभिसूनुर ७९
सम्यक नत्वा महावीर
१०४
जयति नवनलिणिकुवलयविय
७८
य इति सर्वनाम
४६
जे भिक्खु मासिय
२८८
तिण्णि निसिही. देवेन्द्रवृन्दस्तुत
२५४
तिण्णि निसिही. देवेन्द्रवृन्दस्तुत
४०७
क्लिन / ओरिजिनल डीवीडी (डीवीडीझे. पत्र / झे. पत्र) कृति प्रकार
गद्य
(२१)
पद्य
(७९)
पद्य (१०६)
गद्य
(७६)
गद्य
(४६)
(३२१)
पद्य
गद्य
पद्य
(२५४)
पद्य
गद्य
पद्य
(४०७)
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
सर्ग-२ श्लोक-१५५ तक पाठ है.
छाणी भंडार की प्रत पर से नकल की गयी है. प्रत पर हाथ से अज्ञातकर्तृकटीका व शान्तिसूरीय टिप्पन दोनो का उल्लेख है पर
प्रत में कहीं भी टीका का उल्लेख नहीं मिलता है. लेखन स्थल पाटण
ग्रन्थाग्र-१८५४.
( जुनो नं. १२४ )
यह अवचूरि बृहट्टीका से संकलन करके संक्षेप में बनायी गयी है.
उल्लिखित प्रतिलेखन वर्ष मूल प्रति का है.. / विस्तृत प्रतिलेखन पुष्पिका.
(जुनो नं. १४२ ) प्रत नं.४४१ इस प्रत से संबंधित भाग होना चाहिये.
(जुनो नं. १४३) प्रत नं.४४० इस प्रत से संबंधित भाग होना चाहिये.
(जुनो नं. १४५) लहिया द्वारा लिखी गयी प्रति.