________________
(पुप्रे) मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी आदि कृत प्रेस कॉपिओनी झेरोक्ष पूर्णता
प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र
ग्रंथांक
:स्थिति
प्रतनाम (पेटा नंबर).पेटा नाम कृति नाम
क्लिन/ओरिजिनल प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल डीवीडी (डीवीडी- पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष झे.पत्र/झे.पत्र)
कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कति प्रकार
कर्ता
भाषा
परिमाण
रचना वर्ष
आदिवाक्य
गं. १६000
नमो अरिहन्ताणं...
गया
सुधर्मास्वामी श्रेष्ठ
४५५-१
: उपासकदशाडग
हस्तप्रत
(७२)
पाठान्तरयुक्त भंडारों के संकेत एवं किस पत्र में: क्या पाठान्तर है उसकी सूची. प्रत की प्रेसकॉपी के संदर्भ में सामान्य जानकारी. पूर्णभद्र कृत 'दशश्रावकचरित्रचूर्णि'मां सप्तमाङ्ग चूर्णि' एम नाम लखेल छे.
उपासकदशाङ्गसूत्र
सुधमोस्वामी
प्रा.
ग्रं.८१२
तण कालेणं तेणं
४५५-२
अन्तकृदशागसूत्र
हस्तपत
श्रेष्ठ सुधर्मास्वामी
ग्रं.८९०
तेणं कालेणं तेणं
४५५-३
अष्ट
संपर्ण
हस्तपत
अनुत्तरोपपातिकसूत्र अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र
(१४)
सुधर्मास्वामी
ग्रं.१९२
तेणं कालेणं तेणं
४५५-४ : प्रश्नव्याकरणसत्र
हस्तप्रत
सुधास्वामी
गं. १३५०
४५५-५
विपाकसूत्र
हस्तप्रत
(७७). नमो अरहन्ताणं। जम्बू गद्य ७९
७९) तेणं कालेणं तेणं
(५) चवीस: जिनपय नमी पद्य
सुधमास्वामी
गं. १३१६
संपर्ण
४५५-६ : विमलसोमसूरि गुरु बारहमासा
हस्तपत
श्रेष्ठ ज्ञानसोम
। मारुगजेर
गा.३७
४५६
उपासकदशागसूत्र
श्रेष्ठ
संपूर्ण
हस्तप्रत
वि.१५७५
(३४)
सुधर्मास्वामी
ग्रं.८१२
तेणं कालेणं तेणं
प्रतिलेखन पुष्पिका दी गयी है. (पे.पू.) प्रतिलेखन पुष्पिका दी गयी है. मूल प्रति पर से झेरोक्ष किया गया है. लेखन स्थल : कडीनगर, पूर्णभद्र कृत 'दशश्रावकचरित्रचूर्णि'मां 'सप्तमाङ्ग चूर्णि' एम नाम लखेल छे. (जुनो नं. २०५८६)एल. डी. इंडोलोजीअहमदाबाद के मूल प्रत की झेरोक्ष. पूर्णभद्र कृत 'दशश्रावकचरित्रचूर्णि'मां 'सप्तमाङ्ग चूर्णि' एम नाम लखेल छे.
उपासकदशागसूत्र सह टीका
श्रेष्ठ
हस्तप्रत
उपासकदशाङ्गसूत्र
सुधर्मास्वामी
ग्रं.८१२
तेणं कालेणं तेणं
ग्रं. ९००
उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति उपासकदशागसूत्र सह टीका उपासकदशाङ्गसूत्र
अभयदेवसूरि श्रेष्ठ सुधर्मास्वामी
हस्तपत
श्रीवर्द्धमानमानम्य १११ तेणं कालेणं तेणं
प्रा.
गं.८१२
टिप्पण व पाठभेद सहित....... पूर्णभद्र कृत 'दशश्रावकचरित्रचूर्णि'मां ! "सप्तमाङ्ग चूर्णि' एम नाम लखेल छे.
। उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति ..
अभयदेवसूरि
सं.
ग्रे. ९००
श्रीवर्द्धमानमानम्य
गद्य
299