Book Title: Gyansara Ashtak
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 14
________________ आँख ही अंधकार को नाश कर देती है, वहाँ दीपकों का क्या उपयोग है ? ॥६॥ मिथ्यात्वशैलपक्षच्छिज् ज्ञानदम्भोलिशोभितः । निर्भयः शक्रवद्योगी, नन्दत्यानन्दनन्दने ॥ ७ ॥ भावार्थ : मिथ्यात्व रूप पर्वत के पक्ष का छेद करने वाला और ज्ञान रूप वज्र से सुशोभित और इन्द्र के समान निर्भय योगी आनन्द रूप नंदन वन में क्रीडा करता है, सुख अनुभव करता है ॥७॥ पीयूषमसमुद्रोत्थं, रसायनमनौषधम् । अनन्यापेक्षमैश्वर्य, ज्ञानमाहुर्मनीषिणः ॥ ८ ॥ भावार्थ : ज्ञान अमृत है लेकिन समुद्र से उत्पन्न नहीं है । ज्ञान रसायन है, पर औषध नहीं है । ज्ञान ऐश्वर्य है, पर किसी अन्य की अपेक्षा नहीं है, ऐसा ज्ञानी कहते हैं ॥८॥ शमाष्टकम् - 6 विकल्पविषयोत्तीर्णः, स्वभावालम्बनः सदा । ज्ञानस्य परिपाको यः, स शमः परिकीर्तितः ॥ १ ॥ भावार्थ : विकल्प रूप विषयों से निवृत्त बना, निरन्तर आत्मा के शुद्ध स्वभाव का आलंबन जिसे है, ऐसा ज्ञान का परिणाम समभाव कहलाता है ॥१॥ १४

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