Book Title: Gyansara Ashtak
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 78
________________ नमो दुर्वाररागादि - वैरिवारनिवारिणे । अर्हते योगिनाथाय, महावीराय तायिने ॥ भावार्थ : रागादि आंतर शत्रुगण, जिनका निवारण करना मुश्किल है, उन्हें जितनेवाले योगीनाथ अर्हत् त्राता ऐसे प्रभु महावीरस्वामी को नमस्कार ॥ ००० पन्नगे च सुरेन्द्रे च, कौशिके पादसंस्पृशि । निर्विशेषमनस्काय, श्रीवीरस्वामिने नम ॥ भावार्थ : सर्प हो या सुरेन्द्र हो, कोई भी चरण स्पर्श करे तो जिनके मनमें कोई भेदभाव नहीं उठता, ऐसे श्रीवीरस्वामी को नमस्कार ॥ O 1 ००० ७८ योगशास्त्र 1 मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गगलं गौतमप्रभुः । मङ्गलं स्थूलभद्राद्या, जैन धर्मोऽस्तु मङ्गलम् ॥ भावार्थ : प्रभु महावीरस्वामी मंगल हो, प्रभु गौतमस्वामी मंगल हो, स्थूलभद्रस्वामी आदि पूर्वमहर्षि मंगल हो एवं जैन धर्म मंगल हो । योगशास्त्र

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