Book Title: Gyansara Ashtak
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 77
________________ ज्ञान गर्भित-मांगलिक 'ॐ'कार बिन्दुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमोनमः ॥ भावार्थ : योगीजन हमेशा ॐकार-बिन्दु संयुक्त का ध्यान करते है। जो कामितपूरण है एवं मोक्षदायक है, ऐसे ॐकार को हमारा पुनः पुनः नमस्कार ॥ ० ० ० अज्ञानतिमिरान्धानां, ज्ञानाञ्जनशलाकया । नेत्रमुन्मीलितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ भावार्थ : अज्ञान के अन्धकार से अंध जीवों के नेत्र को जिन्होंने ज्ञान-अञ्जन की शलाका से खोल दिये, ऐसे श्रीगुरु को नमस्कार ॥ ० ० ० पद्दयादृष्टिमात्रेण, दोषा यान्ति दिगन्तरम् । प्रकाशन्ते गुणाः सर्वे, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ____ भावार्थ : जिनकी दयादृष्टि से ही सभी दोष दूर हो जाते है एवं सभी गुण प्रकट हो जाते है, ऐसे श्रीगुरु को नमस्कार ॥ ७७

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