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भावार्थ : जिस प्रकार दिन और रात में संध्या अलग है, उसी प्रकार केवलज्ञान और श्रुतज्ञान से भिन्न अनुभव केवलज्ञानरूप सूर्य के अरुणोदय के समान ज्ञानियों ने देखा है ॥१॥ व्यापारः सर्वशास्त्राणां, दिकप्रदर्शनमेव हि । पारं तु प्रापयत्येकोऽनुभवो भववारिधेः ॥ २ ॥
भावार्थ : निश्चय ही सभी शास्त्रों का कार्य दिशा दिखाना ही है, लेकिन संसार समुद्र से पार लगाने वाला तो एक अनुभव ही है ॥२॥ अतीन्द्रियं परं ब्रह्म, विशुद्धानुभवं विना । शास्त्रयुक्तिशतेनापि, न गम्यं यद् बुधा जगुः ॥ ३ ॥
भावार्थ : इन्द्रियों द्वारा अगोचर ऐसा परमात्मा का स्वरूप शास्त्रों की सैकड़ों युक्तियों द्वारा भी नहीं जाना जा सकता, उसे मात्र अनुभव से ही जाना जा सकता है ऐसा पंडित कहते हैं ॥३॥ ज्ञायेरन् हेतुवादेन, पदार्था यद्यतीन्द्रियाः । कालेनैतावता प्राज्ञैः, कृतः स्यात्तेषु निश्चयः ॥ ४ ॥
भावार्थ : यदि युक्तियों द्वारा अतीन्द्रिय पदार्थों का बोध संभव होता तो इतने समय में पंडितों ने उन अतीन्द्रिय पदार्थों के विषय में निश्चय कर लिया होता ॥४॥
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