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भावार्थ : परिग्रह का त्याग करने से साधु का पाप रूपी मैल क्षण में ही नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार पाल टूटने से तालाब का पानी बह जाता है ॥५॥ त्यक्तपुत्रकलत्रस्य, मूर्छामुक्तस्य योगिनः । चिन्मात्रप्रतिबद्धस्य, का पुद्गलनियन्त्रणा ? ॥ ६ ॥
भावार्थ : जिसने पुत्र-पत्नी का त्याग किया है, जो ममत्व से रहित है, और ज्ञान मात्र में आसक्त है, ऐसे योगी को पुद्गल का बंधन क्या होगा ? ॥६॥ चिन्मात्रदीपको गच्छेद्, निर्वातस्थानसन्निभैः । निष्परिग्रहतास्थैर्य, धर्मोपकरणैरपि ॥ ७ ॥
भावार्थ : 'पवनरहित स्थान' रूप धर्म के उपकरणों से ज्ञान मात्र दीपक रूप (मुनि) परिग्रह त्यागरूप स्थिरता को प्राप्त करता है ॥७॥ मूर्छाच्छन्नधियां सर्वं, जगदेव परिग्रहः । मूर्च्छया रहितानां तु, जगदेवापरिग्रहः ॥ ८ ॥
भावार्थ : मूर्छा से जिसकी बुद्धि आच्छादित है, उनके लिये सर्व जगत् ही परिग्रह है। मूर्छारहित व्यक्तियों के लिये तो संसार ही अपरिग्रह रूप है ॥८॥
अनुभवाष्टकम्-26 सन्ध्येव दिनरात्रिभ्यां, केवलश्रुतयोः पृथक् । बुधैरनुभवो दृष्टः, केवलार्कारुणोदयः ॥ १ ॥
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