Book Title: Gyansara Ashtak
Author(s): Yashovijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 65
________________ है और ब्रह्म के द्वारा ब्रह्म में जो अब्रह्म का हवन करता है, जो ब्रह्मगुप्ति वाला है ॥७॥ ब्रह्माध्ययननिष्ठावान्, परब्रह्मसमाहितः । ब्राह्मणो लिप्यते नाथै, नियाग-प्रतिपत्तिमान् ॥ ८ ॥ भावार्थ : ब्रह्म अध्ययन में जो निष्ठावान् है, परब्रह्म में समाहित है और नियाग को जिसने प्राप्त कर लिया है ऐसा ब्राह्मण (निर्गन्थ) कभी पाप से लिप्त नहीं होता ॥८॥ ___ भावपूजाष्टकम्-29 दयाम्भसा कृतस्नानः, संतोषशुभवस्त्रभृत् । विवेकतिलकभ्राजी, भावनापावनाशयः ॥ १ ॥ __ भावार्थ : दया रूपी पानी से जिसने स्नान किया है संतोषरूप उज्जवल वस्त्र धारण किये है, विवेकरूप तिलक से शोभायमान है, शुभ भावनाओं से पवित्र आशय वाला है ॥१॥ भक्तिश्रद्धानघुसृणोन्मिश्रपाटीरजद्रवैः । नवब्रह्माङ्गतो देवं, शुद्धमात्मानमर्चय ॥ २ ॥ भावार्थ : भक्ति और श्रद्धारूप केसर मिश्रित चंदन के द्वारा शुद्ध आत्मदेव की नव प्रकार के ब्रह्मचर्य रूप नव अंगों की तू पूजा कर ॥२॥ ६५

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