Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ 8 ] गौतमचरित्र | यह शास्त्र जो मैं बना रहा हूं वह भी संधि, वर्ण, शब्द, अर्थ, धातु, हेतु आदि सबसे रहित है इसलिये विद्वान पुरुषोंको यह मेरा अपराध सदा क्षमा करते रहना चाहिये ॥१२- १३ ॥ जिसप्रकार जल कमलों को उत्पन्न करता है परंतु उनकी airat सब ओर वायु ही फैलाता है उसीप्रकार कविलोग काव्य-रचना करते रहते हैं परन्तु सज्जन लोग उसे सदा शुद्ध करते रहते हैं । ( यह सदाकी रीति है ) ॥ १४ ॥ जिसप्रकार आमकी मंजरी कोकिलोंको बोलने के लिये बाध्य करती है उसीप्रकार श्रीगौतमस्वामीकी भक्ति ही उनके जीवनचरित्रकी रचना करनेके लिये मेरे मनमें उत्साह दिलाती है । भावार्थ - उनकी भक्तिसे ही मैं यह चरित्र लिखता हूं || १५ || जिसप्रकार किसी ऊंचे पर्वतपर चढ़ने की इच्छा करनेवाले लंगड़े मनुष्यकी सब लोग हँसी उड़ाते हैं उसीप्रकार अति अल्पबुद्धिको धारण करता हुआ मैं भी इस चरित्रको लिखनेकी इच्छा करता हूं इसलिये मैं भी अच्छे कवियोंकी दृष्टिमें अवश्य ही हँसीका पात्र समझा जाऊंगा ।। १६ ।। ॥ १२ ॥ सत्संधिवर्णशब्दार्थधातु हेतुविवर्जितम् । क्रियते यन्मया · : सर्वं तत्तज्ज्ञैः क्षम्यते सदा ॥ १३ ॥ कुर्वन्ति कवयः काव्यं सन्तः शुध्यन्ति तत्सदा । सुवते वारि पद्मानि गंध तन्वन्ति वायवः ॥ १४ ॥ अस्य भक्तिः करोत्येव मां हि सोद्यममानसम् । मंजरी सहकारस्य मौखर्य कोकिलं यथा ॥ १५ ॥ अल्पमतिः कवीनां हि लप्स्यामि हास्यमंदिरम् । चिकीर्षुश्चरितं खंजो गिर्यारोहमना इव ॥१६॥ जंबूद्वीपोऽथ संभाति जंबूवृक्षोपलक्षितः । लवणवार्धिनाविष्टो लक्षयोज

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