Book Title: Dhyan Yog Vidhi aur Vachan
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ पर हकीकत में असत्य। ___ मृत्यु अंधकार है। प्रकाश का न होना ही अंधकार का रहना है । जीवन की मृत्यु घटित होती ही नहीं। भारत की मनीषा ने आत्मा को अजर-अमर बताया है। इसलिए जिसकी मृत्यु होती है वह तुम नहीं होते। तुम जो हो उस तत्त्व की कभी मृत्यु नहीं होती। तुम्हारे भीतर जो सचेतन तत्त्व है, उसकी न कभी मृत्यु हुई है और न मृत्यु हो सकती है। वह शाश्वत है। जीवंत है। न इस तत्त्व का कभी जन्म हुआ और न मृत्यु होती है। जन्म और मृत्यु दोनों देह के होते हैं, चेतना के नहीं। चेतना न जन्मती है और न मृत होती है, वह शाश्वत रहती है। आत्म-चेतना जन्म और मृत्यु दोनों द्वारों से गुजरकर भी दोनों से अछूती रहती है, अस्पृष्य है ! ___ जब चैतन्य सदा है, तो हमारे जीवन के अंधकार को दूर करने की आवश्यकता है। हमारा चिन्तन, जो मृत्यु को लेकर है, उसे बदलना होगा। अन्यथा वह मृत्यु की धारणा से स्वयं को जीवनपर्यन्त ग्रसित रखेगा और जीवन के वास्तविक आनन्द से वंचित रह जाएगा। जीवन को जीवन्तता से जीने के लिए, मृत्यु के भय से मुक्त होना होगा। इसलिए धर्म को जीवन से, प्रेम से, अहोभाव से स्वीकार करना चाहिए, किसी भय या पूर्वाग्रह से नहीं। भयभीत चित्त कभी धार्मिक नहीं हो सकता। वह प्रेम और आनन्द उपलब्ध नहीं कर पाएगा। जैसे घर में बालक को कहा जाए कि वह प्रतिदिन एक पृष्ठ सुलेख लिखे अन्यथा साँझ को पिटाई होगी, तो वह बालक पिटाई के भय से कार्य करेगा, पर उसका आनन्द, उसका रस खो जाएगा। हमारी भी यही स्थिति है। हम न जाने किन-किन विचारों, अन्धविश्वासों और रूढ़ियों से ग्रस्त होकर, भय से धार्मिक बनने की चेष्टा करते हैं। यह अलग बात है कि हम सच्चे धार्मिक हो नहीं पाते। सिर्फ धार्मिक होने का दिखावा भर कर पाते हैं। __ आप जब भी रास्तों से गुजरते हैं, बीच में आने वाले मंदिरों, दरगाहों में हाथ जोडते चले जाते हैं। कभी आपने सोचा, आप यह क्या कर रहे हैं? आज जब आप ऐसा करें, तो क्षण भर ठहर जाना और सोचना आप क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं? कहीं आपका भय ही तो प्रेरित नहीं कर रहा है कि अगर ऐसे ही निकल गये, तो न जाने क्या अनर्थ हो जाएगा। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि तुम अपनी धुन में आगे चले जाते हो फिर एकाएक वह मंदिर याद आता है और तुम भय से भरे हुए वापस लौटते हो। यह तुम्हारा भयभीत मन है। अगर तुम ऐसे ही निकल जाओ बिना हाथ जोड़े तो भी तुम्हारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। तुम्हारा भय तुमसे सारे धार्मिक कृत्य करवाता है। आपने देखा है, जो धर्म रूढ रस्मों में फँसे रहते हैं, उनमें वह सौम्यता कहाँ 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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