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ध्यान:
आत्म-बोध का आयाम
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एक युवक मेरे पास आया। उसने पूछा- मेरे कुछ यक्ष-प्रश्न हैं, जिनका मैं समाधान चाहता हूँ। मेरे प्रश्न जीवन और मृत्यु के बारे में हैं। मैं मुस्कराया। मैंने कहा- मेरे पास जीवन के तो समाधान हैं । मृत्यु से मैं गुजरा नहीं हूँ, सो मृत्यु के प्रश्न निरुत्तर रहेंगे। फिर, सच तो यह है कि जीवन के प्रश्नों का उत्तर न पा सकना स्वयं मृत्यु है। उसने कहा, धन्यवाद! मेरे प्रश्न तिरोहित हो गये। मुझे मेरे प्रश्नों का जवाब मिल गया - जीवन से जुड़े प्रश्नों का भी और मृत्यु से सम्बद्ध प्रश्नों का भी।
मानवजाति की दुविधा यह है कि उसने जीवन के समाधान कम, परलोक के समाधान अधिक तलाशे हैं। उसका मनन मृत्यु पर केन्द्रित रहता है। दुनिया भर के शास्त्र मृत्यु की अवधारणा, उसके फल, उसकी आकांक्षा और उसके निचोड़ों से भरे हुए हैं। इनमें जीवन की चर्चा कम ही है। कोई नरक के नक्शे बना रहा है, तो कोई स्वर्ग के, तो कोई परलोक या आकाश और पाताल के। जीवन के नक्शे और नक्शेकदम पर चलने वाले कितने हैं? जीवन का सत्य तो यह है कि जिसने जीवन का शास्त्र नहीं पढा, वह मृत्यु का शास्त्र कैसे पढ़ पाएगा? जिसने जीवन को न जाना, वह मृत्यु को कैसे जानेगा। जो जीवन का ज्ञाता न बन पाया, वह मृत्यु का ज्ञाता बन जाए, संभव नहीं है। ___मेरी दृष्टि में तो जिसे हम सर्वथा झूठ कह सकें, वह मृत्यु है। दुनिया का एक झूठ है मृत्यु, क्योंकि मृत्यु कभी होती ही नहीं। मृत्यु दिखने में सत्य,
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