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धर्म जीवन का प्रकाश
चेतना में गजब की शक्ति है, यह क्षण का युगों तक विस्तार कर सकती है, युगों को क्षण में समा सकती है। परंतु वह शरीर नहीं, चेतना। शरीर एवं चेतना दोनो भिन्न है। चेतना के चले जाने पर शरीर निर्जीव बन जाता है, और चेतना यानि आनंदधन।
हमारे सबके अन्दर भी यही आनंदधन सोया हुआ है, और श्रवण ध्यान द्वारा इसे जागृत करना है, सोये हुए को जगाना है।
- चित्रभानु
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