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11/श्री दान-प्रदीप
आकाश रूपी कमल में मनोहर कान्तियुक्त चन्द्र-सूर्य रूपी राजहँस जब तक क्रीड़ा करते हैं, तब तक सम्यग्दृष्टि प्राणियों को मोक्षनगर का मार्ग प्रकाशित करते हुए यह दैदीप्यमान दानधर्म जिनप्रवचन रूपी घर में चारों तरफ प्रकाश बिखेरे, जिससे सभी प्राणी मोक्ष रूपी लक्ष्मी का वरण करें।
इस ग्रंथ को साद्यन्त देखने के लिए कृपालु मुनिराज श्रीकर्पूरविजयजी महाराज ने जो कृपा की है, इसके लिए उनका अत्यन्त आभार ज्ञापित है।
इस ग्रंथ में शुद्धि लाने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न किया गया है। फिर भी दृष्टि-दोष या प्रेस-दोष के कारण अथवा अन्य किसी भी कारण से किसी भी स्थल पर कोई स्खलना दृष्टिगोचर हो, तो मिथ्यादुष्कृतपूर्वक क्षमायाचना है।
श्री आत्मानंद भवन-भावनगर गुजराती अनुवादक आसोज शुक्ला विजयादसमी गांधी | वल्लभदास त्रिभुवनदास वीर सं. 2450, आत्म सं. 29, सेक्रेटरी वि. सं. 1980