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9 / श्री दान- प्रदीप
स भव
में मिला हुआ
में
और उस भव में शुद्ध भावपूर्वक मुनियों को किये गये वस्त्रदान से इस दैदीप्यमान पराक्रम, अतुल - उज्ज्वल यश दीर्घ आयुष्य, उत्तम कुल "जन्म, सर्व - इच्छित की प्राप्ति, अपरिमित लक्ष्मी, राज्य-संपत्ति, वैभव, अनिष्ट का नाशादि इस चरित्र में पढ़ते हुए आह्लाद उत्पन्न होता है। इस प्रकार पढ़कर व विचारकर शुद्ध भाव से इस दान को देनेवाले ध्वजभुजंग राजा की तरह अन्त में मुक्तिसुन्दरी को प्राप्त करते हैं । इस प्रकार यह प्रकाश पूर्ण होता है।
एकादश प्रकाश :- पात्रदान का वर्णन और उस पर धनपति सेठ की कथा - विवेकी पुरुष अपनी आत्मा को पात्र बनाने के लिए मुनि (सुपात्र) को पात्रदान करें। यह दान मोक्ष का कारण रूप होने से इस प्रकाश में इसका वर्णन किया गया है। मोक्ष का कारण कर्मक्षय, कर्मक्षय का कारण चारित्र और चारित्र का पालन शरीर के आधीन है। शरीर स्थिति का कारण आहार है और वह पात्र के बिना लब्धि - रहित पुरुष नहीं कर सकता । अतः आहार का कारण पात्र है। तुम्बड़े का पात्र, मिट्टी का पात्र और लकड़ी का पात्र - ये तीन प्रकार के पात्र साधु-साध्वी धारण कर सकते हैं। जैसे- पात्रों को विधिपूर्वक सुपात्र को दान करनेवाले धनपति श्रेष्ठी की तरह लक्ष्मी अपने आप उसके पास चली आती है। ऐसा बताकर यहां धनपति का वृत्तान्त दर्शाया गया है। इसी चारित्र के मध्य अन्याय से धन की आशा करनेवाले चार मित्रों की कथा देकर पात्रदान से होनेवाले अक्षयसुख का वर्णन करके इस प्रकाश को पूर्ण किया गया है।
द्वादश प्रकाश :- दान के गुणों व दोषों का वर्णन और उस पर यक्ष श्रावक, धन व्यापारी, भीम निधिदेव और सुधन - मदन की कथा - गुणयुक्त व दोषरहित दान यदि दिया जाय, तो ही वह मुक्ति का कारण बनता है - यही बात कहने के लिए इस अन्तिम प्रकाश में गुण-दोष का वर्णन किया गया है। 1. आशंसा, 2. अनादर 3. पश्चात्ताप, 4. विलम्ब और 5. गर्व-ये पाँच दोष दान के हैं और इनके विपरीत भाव दान के गुण हैं । मोक्ष के अलावा आशंसा दो प्रकार की है - इहलोक -संबंधी और परलोक - संबंधी । इस लोक से संबंधित कीर्त्ति की अभिलाषा रखना इहलोक -संबंधी आशंसा है। इस पर दो वृद्धा स्त्रियों की कथा दी गयी है और परलोक में ऐश्वर्यादि पाने की इच्छा से दान देना - परलोक-संबंधी आशंसा है । इस पर यक्ष श्रावक की कथा दी गयी है । इन आशंसाओं के साथ दान देने से पुण्य बहुत कम हो जाता है । निराशंस दान गुणरूप है, जिस पर धन व्यापारी की कथा कही गयी है । आदर व अनादर से दान देने के ऊपर विवेचन और उस पर भीम का दृष्टान्त बताया गया है। शुभ भाव से उत्पन्न होनेवाला उत्तम फल और उस पर जीर्ण सेठ की कथा कही गयी है | आदर - रहित दान देने से विपत्ति प्राप्त होती है । इस पर निधिदेव और भोगदेव की कथा