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7 / श्री दान- प्रदीप
श्रावकों को निरन्तर वैसा दान मुनीश्वरों को महान भावों के साथ करना चाहिए, जिससे चारित्र की प्राप्ति सुलभ हो । इस पर करिराज की कथा व गर्भित धन - जो कि इसलोक और परलोक में महत्त्व व धर्मादि का अद्वितीय कारण होने से और धर्म का कारण धन भी होने से (क्योंकि धन से धर्म और धर्म से मोक्ष उत्तरोत्तर संबंधित होने से) उस पर दण्डवीर्य राजा का दृष्टान्त, धर्मबुद्धि मंत्री की कथा, मोक्ष - पुरुषार्थ का विवेचन, करिराज के पूर्वभव का वृत्तान्त बताकर अन्त में इस दान के सेवन से पाप-समूह का नाश करके करिराज ने स्थिर, अनन्त, अखण्ड आसन मोक्ष को प्राप्त किया । यह हकीकत इस विभाग में देकर इस प्रकाश को पूर्ण किया गया है।
सप्तम प्रकाश :- आहारदान का वर्णन, उसके प्रकार और उस पर कनकरथ की कथा—आहारदान नामक चौथे भेद का विवरण इस प्रकाश में दिया गया है। देह पुण्य क्रिया में उपकारक होने से इसका उपादान कारण आहार है। जैसे- सभी व्यापारों में बीज बोना मुख्य है, वैसे ही दानों में आहारदान मुख्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिनेश्वर भगवान को दीक्षा लेने के बाद पहला पारणा करवानेवाला अन्नदान के प्रभाव से उसी भव में अथवा तीसरे भव में अवश्य मोक्ष जाता है। यहां श्रेयांसकुमार, शालिभद्रादि के दृष्टान्त दिये गये हैं । दाता, ग्रहणकर्त्ता और वस्तु - यह त्रिपुटी शुद्ध हो, तो ही मोक्ष होता है । उस त्रिपुटी का विस्तारपूर्वक विवेचन विशेष रूप से जानने योग्य है। पहले अन्नदान का माहात्म्य, पात्रदान की महिमा और उस पर कनकरथ की कथा के साथ सात प्रकार के पात्रों का वर्णन और उस पात्रदान के अंतर्गत भद्र, अतिभद्र की कथा अनेक हकीकतों के साथ दी गयी है। जिसका मनन करने से मनुष्य उसका दाता बनकर अक्षयसुख प्राप्त करता है। यहां इस दान का अधिकार पूर्ण होता है ।
अष्टम प्रकाश :- जलदान का विवेचन, उसके प्रकार और उस पर रत्नपाल राजा का दृष्टान्त - पुण्य की खान रूपी सुपात्र को पानी का दान करने का पाँचवाँ भेद इस प्रकाश में बताया गया है। सभी आरंभों से निवृत मुनियों को प्रासुक (अचित्त) जल कल्पनीय होता है, अतः वे कच्चे पानी का आरंभ नहीं करते । श्रीओघनिर्युक्ति में कहा है कि अप्काय का आरंभ करने से छः काया की विराधना होती है, क्योंकि जल में अन्य पाँच काया सम्भव है। अतः यतियों को प्रासुक जल ग्रहण करना चाहिए। वह जल आरनाल आदि के भेद से नौ प्रकार का होता है। इसके उपरान्त द्राक्षोदक आदि बारह प्रकार का जल भी शास्त्रों में बताया गया है । उनके नाम विवेचन के साथ इस प्रकाश में दिये गये हैं । वे विशेष रूप से जानने योग्य हैं । मुनियों को उत्सर्ग मार्ग में कैसा जल उपयोग में लाना चाहिए तथा श्रावक को आश्रित करके भी यहां जो बताया गया है, उसके सिवाय दूसरे प्रकार के जल का पान करना आगम