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अट्ठारह
चारित्र चक्रवर्ती इन दोनों में से प्रथम विषय श्री शिखरजी की यात्रा के दौरान आचार्यश्री के सान्निध्य में हुए पंच कल्याणक के समय संस्कृत भाषा में लिखवाये गये शिलालेख से संबंधित है। इसे उन्होंने १९५३ के संस्करण में मुद्रित करवाया, किंतु आगे के संस्करणों में वो नहीं था, उसे इतिहास के बोधार्थ हमने उसी संस्करण से लेकर पुनः इस संस्करण में मुद्रित करवाया है। ___ इसके मुद्रित होने के पश्चात् हमारे पास शिलालेख की मूल प्रति आई व मूल प्रति का मुद्रित प्रति से मिलान करने पर हमने पाया कि शिलालेख का एक विशिष्ट अंश संभवतः प्रुफ रिडिंग की भूल वश १९५३ में छूट गया था।
यह शिलालेख १६५३ के संस्करण में पृष्ठ क्रमांक २११-२१३ पर मुद्रित था।
२१३ पृष्ठ पर से शिलालेख में उल्लिखित महापुरुषों के नाम वाला परिच्छेद जो कि संभवतः प्रुफ रिडिंग की भूल वश छूट गया था, इस प्रकार है :
भारतवर्षीयमहासभायाः पूर्ववर्षाध्यक्षो नागपुरनिवासी सवाईसिंघई श्रेष्ठी मोतीलाल गुलाबचन्द्र साव, भूतपूर्वसभापतिरिन्दौरनिवासी राज्यभूषण दानवीर रायबहादुर सरनाईट उपाधिविभूषितः श्रेष्ठो हुकुमचन्द्रः, महासभायाः अस्य नैमित्तिकाधिवेशनस्याध्यक्षोरायसाहिब इति गवर्नमेन्टोपहृतपदालङ्कृतः कुँवर मोतीलाल जी रानीवाले ब्यावरनिवासी तत्पिताश्च रायबहादुर धर्मवीर चंपालाल श्रेष्ठी, शास्त्रिपरिषदः स्थाय्यध्यक्षः पण्डितशिरोमणिः खण्डेलवाल कुलभूषण पण्डित धन्नालाल कासलीवाल इंदौर निवासी, तदधिवेशनाध्यक्षो नानूलाल शास्त्री जयपुरनिवासी , संमेदाचलोपरि येन पूर्वं प्रतिष्ठा कारिता स श्रीमान् सिवनी निवासी रायबहादुर धर्मवीर टीकमचन्द्रजी सोनी, उक्तसभाया महामंत्री रायसाहिब जातिनेतृपदविभूषितः श्रेष्ठीचैनसुख छाबड़ा सिवनीस्थः, न्यायतीर्थव्याकरणसिद्धांतशास्त्री, शास्त्रिपरिषदो मंत्री वंशीधर: सोलापुरस्थः विद्यावरिधिवादीभकेसरिन्यायालंकारधर्मधीरेतिपदवो विभूषितः पं. मक्खनलाल शास्त्री जैनगजटनाम्नो महासभामुखपत्रस्य संपादक: चावलीवास्तव्यः, धर्मधीरे ति पदवीसमलंकृतः पं. श्रीलाल महोदयः स्वाध्यायविभागस्य मंत्री अलीगढ़स्थः, कविभूषण पं. इन्द्रलालजीशास्त्रीसंपादकः खंडेलवालमहासभाया मुखपत्रस्यजयपुरस्थः,खण्डेलवालमहासभाया महामंत्री श्रेष्ठी माणिकचन्द्रो बैनाडागोत्रजः कलिकातास्थः एवकादयो विख्याता धनवन्तो विद्वांसश्य सर्वविधश्रावका असंख्येशा महोत्सवेऽत्र समायाताः।
शिलालेख के इस अंश में उन महामनाओं के नाम हैं, जिनकी उपस्थिति निर्दिष्ट कार्य व कार्यक्रम, दोनों को गौरव प्रदान करतीथी॥जैसे आदरणीय विद्वान पं.सुमेरूचंद्रजी किसी उत्सव में सम्मिलित हों व उस उत्सव से संबंधित प्रकाशित समाचार में पंडितजी का उल्लेख न हो, तो क्या वह समाचार पूर्ण समझा जायेगा? निश्चित ही नहीं। इतना ही नहीं, अपितु समाचार-प्रेषक को अपनी इस भूल के लिये स्पष्टीकरण भी देना होगा।
ठीक ऐसे ही व इस कद के महानुभावों के नाम हैं शिलालेख के इस अंश में। कुछ नाम तो पंडितजी के कद से भी बड़े हैं।
इस मूल शिलालेख की प्रति सन् १९३१ में सेठ जीवराज गौतमचंदजी ने जो मराठी
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