Book Title: Champu Jivandhar
Author(s): Harichandra Mahakavi, Kuppuswami Shastri
Publisher: Shri Krishna Vilasa Press Tanjore

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवंधरचम्पुकाव्ये तथा तथावर्धत मोदवाधिरुद्वेलमूरव्यनिकायभर्तुः ॥ ९९ ॥ उत्तानशयने विभ्रन्मुष्टिं तुष्टिकरः सुतः । उद्यत्कुड्मलयुग्मश्रीपद्माकरतुलां दधौ ॥ १० ॥ मुग्धस्मितं मुखसरोजगलन्मरन्द. धारानुकारि मुखचन्दिरचन्द्रकाभम् । पित्रोः प्रमोदकरमेष बभार सूनुः कीर्तेर्विकासमिव हासमिवास्यलक्ष्म्याः ॥१०१ ॥ पयोधरं धयन्सूनुः पयो गण्डूषितं मुहुः । उद्गिरन्कीर्तिकल्लोलं किरन्निव विदिद्युते ॥ १०२॥ सञ्चरन्स हि जानुभ्याममले मणिकुटिमे । प्रतिबिम्ब परापत्य बुद्धया संताडयन्बभौ ॥ १०३ ॥ क्रमेण सोऽयं मणिकुटिमाङ्गणे नखस्फुरत्काञ्चिझरीभिरश्चिते । स्खलत्पदं कोमलपादपङ्कजक्रमं ततान प्रसवास्तुते यथा ॥१०४॥ तावत्सुनन्दापि जलगर्भेव कादम्बिनी रत्नगर्भेव वसुमती फलगर्भेव वल्लरी तेजोगर्भेव शुनासीरकाष्ठा श्रेष्ठिसती शनैरन्तर्वत्नीधुरामाविभ्राणा क्रमेण नवमासेष्वतीतेषु नन्दान्यं नाम नन्दनं जनयामास । तत्सौभ्रात्रेण विभ्राजन्मन्मनालापलालितः । जीवकस्तनयैरन्यैर्मुदा चिक्रोड पांसुषु ॥ १०५ ॥ अथ पञ्चमे वयसि सञ्चरन्प्रत्यक्षपञ्चशरः समुदञ्चितव्यक्तवचनप्रपञ्चः स्वयमागतस्य सकलकलाकल्लोलिनीशैलस्यार्यनन्दिनामधेयस्याचार्यवर्यस्योपकण्ठे कण्ठीरवकिशोराकृतिरयं प्रत्यूहव्यूहपरिहाराय परिकलितसिद्धनमस्यः सिद्धमातृकाप्रसिद्धां सरस्वती परिशीलयामास । लेभे जीवंधरो वाणी क्रमनिर्जितसिन्धुरः । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162