Book Title: Champu Jivandhar
Author(s): Harichandra Mahakavi, Kuppuswami Shastri
Publisher: Shri Krishna Vilasa Press Tanjore
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जीपंधरचम्पुकाव्ये
श्रवसा परमं मन्त्रं मनसा हन्त मा स्पृशन् । कुक्कुरो विनही प्राणान्दुःखलेशविवर्जितः ॥ १२ ॥ चन्द्रोदयाह्वयगिरौं विमलोपपाद___ शय्यातले रुचिरवैक्रियकाख्यदेशे । स्त्रग्वी सदंशुकघरो नवयौवनश्रीः
प्रादुर्बभूव स सुदर्शननामयक्षः ॥ १३ ॥ राकाचन्दिरदत्तदास्यममलं यस्यास्यपङ्केरुहं * नेत्रे वीतनिमेषकेऽकलयतां निष्कम्पमीनश्रियम् । पाणी कल्पकपल्लवप्रतिघृणी माणिक्यभीषोज्ज्वला ___ मूर्तिः पुष्पितकल्पपादपलतास्फूर्तिस्तदानृम्भत ॥ १४ ॥ ततः कल्पतरुषु प्रमोदबाप्पबिन्दूनिव प्रसूननिकरानवकिरत्सु, दुन्दुभिस्वनितेषु दिगन्तरालविजृम्भितेषु, मन्दारवनकुडुम्बिगन्धवहस्तनंधये मन्दसञ्जारमन्थरे, रविकोटिसदृक्षेषु यक्षेष समन्तात्प्रणामदक्षेषु, मञ्जमञ्जीररवमुखरितदिगन्तरासु सुराङ्गनासु मधुरगानकलाविलसितनर्तनकुशलासु, मुप्तोत्थित इवायं दिशि दिशि दृशं व्यापारयन्, विस्मयसंमदपूरयोः संगमे निमनः, तत्क्षणननितावधिज्ञानतरणिमवलम्ब्य प्रबुद्धजीवकोपदिष्टमन्त्रप्रभावविलसितदेवभूयः, तत्र जयेत्यादिशब्दमुखरमुखैनिलिम्पैः सप्रश्रयमेत्य किरीटमणिपूणिरानिनीराजितचरणनीरे विज्ञापितं मङ्गलमज्जनजिनेन्द्रपूजादिकं यथानियोगमातन्वन्, जीवंधरस्वामिवरिवस्यापरायणः परिवारैः सह तदुपकण्ठमाटिटीके । तवार्य मन्त्रप्रभवा ममेडशी विभूतिरित्यादिनुतिं समाचरन् । विधाय पूनामिह जीवकस्य वै प्रादान्मुदा दिव्यविभूषणान्यसौ ॥१६
अथ ललाटंतपतपनबिम्बे गगनकाननमध्यपुञ्जीभूतदवहुताशन
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