Book Title: Champu Jivandhar
Author(s): Harichandra Mahakavi, Kuppuswami Shastri
Publisher: Shri Krishna Vilasa Press Tanjore

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Page 93
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९ www.kobatirth.org जीवंधरच पुकाव्ये गभीरहय हेषितैर्मदगजावली बृंहितै Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जगत्रितयमन्वभूत्परमतोक्तशब्दात्मताम् ॥ ३३ ॥ शब्देकार्णवमनमेतमखिलं लोकं समीक्ष्य क्षणा देवा व्योनि समिद्विलोकनकलाबडादरा मेदुराः । युद्धारम्भनिरस्ततन्द्रकुरुराड्बाणासनादुद्गतानाराचान्निविडप्रभान्नभसि ते सान्ध्याम्बुदान्मेनिरे ॥ ३४ ॥ पद्मास्य मुख्यकर कोमलरक्तकान्तिकल्लोलपल्लवितकार्मुकवल्लरीभ्यः । नामाङ्किता प्रचलिता च शिलीमुखालिजीवंधरस्य पदपद्मसमीपमाप ॥ ३५ ॥ द्विरेफः शरवारोऽयं तस्य पादाम्बुजान्तिके । भ्रमंकार तद्युक्तं मित्रसांनिध्यसूचनम् || ३६ | तदनु नामाङ्किततदीयबाणगणवीक्षणेन समुन्नतध्वजचिह्नसंदर्शनेन च, एते वयस्या इति निश्चित्य, नरपतिना साकं तदभ्याशमागतः संमदविकसितरोमकूप कोरकिततनुलतः कुरुपतिः, सबहुमानं तानेकै कशः संभाव्य, निजानुज्ञया रथारूढैः सहचरनिकरैः पुरस्कृतः, पार्श्वगतस्यन्दनकन्दलितस्थितिना महीपतिना संभाषमाणः, सिन्धुर गन्धर्वशताङ्गपदगशबलं बलं पुरतो विधाय पुरतोरणमतीत्य चलितः, चिरतरविलोकने कुतूहलसंमिलित पौरजननिरन्तरे रथ्यान्तरे स्तम्बेरमकदम्बकं कादम्बिनीति मत्वा समागताभिरिव सौदामि - नोभिः कनकवेत्रलताभिर्वितीणविकाशे विगाहमानः पटुपटहकाह लीडिण्डिमजर्जर झल्लरीमुरजशङ्खप्रमुखवाद्यरवविहितो पहूतिभिः काभिश्चित्सामिकृतमण्डनकलाभिः करकमलसंरुद्धनीविबन्धनकनक चेलाभिरवलाभिः काभिश्वित्सरभसका ची पददत्तमुक्ताहारवडरीभिः कङ्कण For Private And Personal Use Only

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