Book Title: Champu Jivandhar
Author(s): Harichandra Mahakavi, Kuppuswami Shastri
Publisher: Shri Krishna Vilasa Press Tanjore
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चतुर्थो लम्बः । सकाशे, सशावकमृगपूगेन सह मूलतलमाश्रिते नमेरुतरुच्छाये, सरोराजहंसेषु नलिनमुत्सृज्य पत्रच्छायामाश्रितेपु, दीर्घिकाजलेषु शफरोद्वर्तनॆरार्कसंतापादिव क्वथत्सु, शिखण्डिषु नृत्तलीलाविरहेऽपि बहभारं छत्रीकृत्य केकिनीः सेवमानेषु, मधुकरेषु गजगण्डतलात्कर्णपालीमाश्रितेषु, कुसुमावचयश्रान्ताभिः कान्ताभिः सह व्यात्यक्षिकां कर्तुकामा भर्तारः शनैः शनैर्नवापगामाजग्मुः ।
नवापगेयं नलिनेक्षणानां द्विजारवैर्द्राक्कुशलानुयोगम् । विधाय डिण्डीरमनोज्ञहासा चलोमिहस्तैर्दिशति स्म पाद्यम् ॥१६
तावद्यौवनदिनमणिप्रकाशपरिवर्धितामोदवक्षोरुहचक्रवाकयुगलासु कान्तिकल्लोलनिर्लोलासु म गुञ्जकलहंसकास्वपराखिव तरङ्गिणीषु पुरतरुणीषु दयितैः समं सरितमवगाह्य जलक्रीडामातन्वतीषु
कश्चिदम्भसि विकूणितेक्षणं हेमयन्त्रविगलज्जलैर्मुहुः ।। कामिनीमुखमसिञ्चदञ्जसा चन्द्रबिम्बमिव द्रष्टुमागतम् ॥ १७ ॥
काचन चपल जडापहृतदुकूलपट्टे रुचिविजितस्फटिकपट्टे घनजघनफलके नखक्षतिव्याजेन मकरकेतनस्य जगन्जयप्रशस्तिवर्णावलिमिव बिभ्राणा, करनिपीडनोद्गीर्णरक्तिमधारामिव विद्रुमयन्त्रनिर्गलत्पयोधारां शयकान्तिसंक्रान्तरक्तवर्णतया कुङ्कुमरसानुकारिणीं प्रियलपन्तले सहर्ष ववर्ष ।
सुदतीकुचकुलाग्रमारात्तरुणः कश्चिदसिञ्चदम्बुभिः । हृदयस्थलनातरागकल्पद्रुमवृद्धयै किमु कामुकः परम् ॥ १८ ॥ अन्या काचिद्वल्लभं वञ्चयित्वा सख्या साकं वारिमना मुहूर्तम् । तस्या गात्रामोदलोभाद्रमद्भिङ्गैाता सामुनालिङ्गिता च ॥ १९॥ सरोजिनीमध्यविराजमाना काचिन्मृगाक्षी कमनीयरूपा । वक्षोनकोशा मृदुबाहुनाला नालक्षि वायतफुल्लपद्मा ॥ २० ॥
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