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श्री चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर यह मन्दिर बेगाणीयों की पोलके सामने है। शिलापट्ट के लेखमें सं० १८६३ भा० शुक्ला ७ को समस्त बेगाणी संघ द्वारा प्रासादोद्धार करवा कर श्री जिनसौभाग्यसूरिजी से प्रतिष्ठा करवानेका उल्लेख है।
श्री अजितनाथजी का देहरासर यह रांगड़ी के चौकके पास श्री सुगनजी के उपासरे के ऊपर है। इसके निर्माण का कोई उल्लेख नहीं मिलता। मूलनायक प्रतिमा सं० १६०५ वैशाख शुदी १५ को कोठारी गेवरचंद कारित और श्रीजिनसौभाग्यसूरि प्रतिष्ठित है। इसके पासमें गुरु-मंदिर है जिसमें श्री जिनकुशलसूरिजी की मूर्ति सं० १९८८ माघ सुदि १० को नाहटा आसकरणजी कारित और उ० जयचन्द्रजी प्रतिष्ठित है । नीचे की एक देहरी में उ० श्रीक्षमाकल्याणजी को मूर्ति प्रतिष्ठित है।
श्री कुंथुनाथजी का मन्दिर ___ यह मंदिर रांगड़ी के चौकके मध्यमें है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १६३१ मिति ज्येष्ठ सुदि १० को श्री जिनहंससूरिजी ने की। मूलनायकजी की प्रतिमा मिती वैशाख वदि ११ प्रतिष्ठित है। यह मंदिर उ० श्री जयचंद्रजी के स्वत्वमें है। इनकी गुरु परम्परा के ६ पादुकाओं की प्रतिष्ठा सं० १९५८ अषाढ़ सुदि ११ गुरुवार को हुई थी।
श्री महावीर स्वामीका मन्दिर रांगड़ी के चौक के निकटवर्ती बौहरों की सेरीमें स्थित खरतर गच्छीय उपाश्रय के समक्ष यह सुन्दर और कलापूर्ण नूतन जिनालय श्रीमान् भैरूँ दानजी हाकिम कोठारी की ओरसे बन कर सं० २००२ मिती मार्गशीर्ष शुक्ला १० के दिन श्रीपूज्य श्री जिनविजयेन्द्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। बीकानेर में संगमर्मर के शिखरवाला यह एक ही जिनालय है। भगवान महावीर के २७ भव, श्रोपाल चरित्र, पृथ्वीचन्द्र गुणसागर चरित्र, आदि जैन कथानकों के भित्ति-चित्र बड़े सुन्दर निर्माण किये गये हैं मन्दिर में प्रवेश करते ही सामने के आलोंमें गौतम स्वामी और दादा साहब श्री जिनकुशलसूरिजी की प्रतिमाएं विराजमान हैं। पहले यह मंदिर उपाश्रय के ऊपर देहारसर के रूपमें था जहाँ श्रीवासुपूज्य भगवान मूलनायक थे, वे अभी इस मन्दिर के ऊपर तल्लेमें विराजमान हैं।
श्री सुपाश्र्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर नाहटों की गुवाड़ में छत्तीबाई के उपासरे से संलग्न है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १८७१ माघ सुदि ११ को श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा करने का उल्लेख जीतरंग गणिकृत स्तवन में पाया जाता है मन्दिर के शिलालेख में भी सं० १८७१ माघ सुदि ११ को श्रीसंघके कराने और श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है मूलनायक प्रतिमा युगप्रधान श्रीजिनचंद्र
"Aho Shrut Gyanam"