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[ ८१ ] ने समस्त साधर्मियोंके घर पुंगीफल, १ सेर मिश्री और सुरंगी चुनड़िये भेजी ! मिति फाल्गुन शुक्ला २ को युगप्रधान पद और आचार्य पदोत्सवके साथ वा० जयसोम और रत्ननिधानको उपाध्यायपद, पं० गुणविनय व समयसुन्दरको वाचनाचार्य पदसे अलंकृत किया गया। इस समय संखवाल गोत्रीय साधुदेव कारित उपाश्रपको ध्वजा, पताका और मोतियोंसे जड़े हुए चन्द्रवे पूठियोंसे सजाया गया। जनताकी अपार भीड़ आनन्दके हिलोरे लेने लगी। इस उत्सवमें मन्त्रीश्वरने अपने द्रव्यका व्यय करने में कोई कसर न रखी। जिसने जो मांगा वही वस्तु देकर प्रसन्न किया गया। इस उत्सव मन्त्रीश्वरके हाथी, ५०० घोड़े माम और सवाकोड़ रुपये का दान देनेका उल्लेख सं० १६५० में रचित कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबन्ध, सं० १६५४ में रचित भोजचरित्र चौपाई व जयसोम उपाध्याय कृत प्रश्नोत्तर ग्रन्थ में हैं, विशेष जाननेके लिए हमारी "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि" पुस्तक देखना चाहिए।
__ सं० १६२३ मिगसर बदि ५ को श्री जिनसिंहसूरिजी की बीकानेर में दीक्षा हुई उस समय दीक्षा महोत्सव मुं० करमचन्द भांडाणी ने किया। सं० १८६२ मिगसर सुदि गुरुवार को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी का पदोत्सव खजाची साह लालचन्द सालिमसिंह ने किया। सं० १९१७ के फागुण बदि ५ को श्रीजिनहंससूरिजी का दीक्षा-महोत्सव चोपड़ा-कोठारी गेवरचन्द ने किया। सं० १६१७ में फागुण बदि ११ को बीकानेर में श्रीजिनहंससूरिजी का पदोत्सव वच्छावत अमरचन्द आदिने किया। इसी प्रकार सं० १९५६ कातो बदि ५ को श्री जिनकीर्तिसुरिजी का और सं० १६६७ माघ कृष्णा ५ को श्रीजिनचारित्रसूरिजी का नंदि-महोत्सव बीकानेर संघने किया था। वर्तमान श्रीपूज्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिजी का पदोत्सव भी बीकानेर संघने किया
ऊपर केवल खरतरगच्छ की भट्टारक शाखा के पदोत्सवादि का ही उल्लेख किया है। अब क्रमशः खरतराचार्य शाखा, कंवला गच्छ, पायचन्दगच्छ और लौंकागच्छ के कुछ उल्लेखनीय उत्सवोंका वर्णन दिया जा रहा है।
खरतराचार्यशाखा-सं० १६७६ के लगभग श्री जिनसागरसूरिजी के बीकानेर पधारने पर पासाणी ने प्रवेशोत्सव किया। श्री जिनधर्मसूरिजी का भट्टारक पद महोत्सव गोलछा अचलदास ने सं० १७२० में किया। इनके पट्टधर श्री जिनचन्द्रसुरिजी के पदोत्सव के समय बीकानेर संघने लूणकरणसर जाकर लाहण की और उन्हें आग्रहपूर्वक बीकानेर बुलाकर डागा परमानन्द ने प्रवेशोत्सव किया। गोलछा रहिदास ने समस्त खरतरगच्छ में साधर्मीवात्सल्य कर नारियल दिये। कचराणी गोलछाने खांड बांटी। सं० १७६४ में श्री जिनविजयसूरिजी का भट्टारक पदोत्सव पुंजाणी डागा ने किया और फूलांबाई ने प्रभावना की। श्री जिनयुक्तिसूरिजी का पदोत्सव सं० १८१६ में गोलछों ने किया। सं० १८६७ में श्री जिनहेमसूरिजी का भट्टारक पदोत्सव डागा सूरतरामजी ने किया।
कँवलागच्छ-इस गच्छके आचार्य श्री सिद्धसूरिजी का पदोत्सव श्रेष्ठि गोत्रीय मुंहताठाकुरसी ने सं० १६५५ चैत्र सुदि १३ को किया। इनके पट्टधर श्रीककसूरिजी का पदोत्सव भी
"Aho Shrut Gyanam"