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। ८२ 1 मं० ठाकुरसी के पुत्र मं० सांवल ने सं० १६८६ फागुण सुदि ३ को किया। इनके पट्टधर देवगुप्तसूरि का पदोत्सव सं० १७२७ मिगसर सुदि ३ को मं० ईश्वरदास ने किया। श्री सिद्धसूरि का पदोत्सव सं० १७६७ मि. सु० १० को मं० सख्तसिंह ने किया। ककसूरिजी का पदोत्सव सं० १७८३ आषाढ़ बदि १३ मं० दौलतराम ने किया । देवगुप्तसूरिजी का भी उपर्युक्त मं० दौलतरामजी ने सं० १८०७ में किया। सिद्धसूरिजी का पदोत्सव मुं० खुशालचन्द्र ने सं० १८४७ माघ सुदि १० को, ककसूरिजी का मुं० ठाकुरसुत सरदारसिंह ने सं० १८६१ मिति चैत सुदि ८ को किया । एवं श्रीसिद्धसूरिजी का पदोत्सव महाराव हरिसिंहजी ने सं० १९३५ माघ बदि ११ को किया।
पायचन्दगच्छ-इस गच्छ के प्राचार्य मुनिचन्द्रसूरि का पदोत्सव सं० १७४४ में, श्री नेमिचन्द्रसूरि की दीक्षा सं० १७४०, कनकचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं० १७६६ माघ सुदि १४ और भट्टारकपद सं० १७६७ आषाढ सुदि २, शिवचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं०१८१० माघ बदि ६, भट्टारकपद सं० १८११ माघ सुदि ५, भानुचन्द्रसूरि की दीक्षा सं० १८१५ माघ सुदि ७, हर्षचन्द्रमूरि का आचार्यपद सं० १८८३ काती बदि ७, श्री हेमचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं० १६१५ में बीकानेर में हुआ था । पर इन पदोत्सव करने वाले श्रावकों के नाम उसकी पट्टावली में नहीं पाये जाते।
लौकागच्छ–इनके आचार्य कल्याणदासजी की दीक्षा, नेमिदासजी की दीक्षा, और वर्द्धमानजी का प्रवेशोत्सव संवत् १७३० वैशाख सुदि १ को बीकानेर में बड़े धूमधाम से हुआ। संवत् १७६६ में सदारङ्गजी का प्रवेशोत्सव और जीवणदासजी व लक्ष्मीदासजी का प्रवेशोत्सव भी सूराणा और चोरड़ियों ने बड़े समारोहसे किया।
गुरुवंदनार्थगमन-सं० १६४८ में युगप्रधान त्री जिनचन्द्रसूरिजी सम्राट अकबर के आमन्त्रण से लाहौर जाते हुए मार्ग में नागौर पधारे तब वहाँ बीकानेर का संघ आपको वंदन करने को निमित्त ३०० सिजवाले और ४०० प्रवहणों के साथ गया था। वहीं साधर्मीवात्सल्यादि भक्ति करके वापस आनेका उल्लेख जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास में है।
श्रुतभक्ति बीकानेर के आवकों की देव गुरुभक्ति का कुछ निदर्शन उपर किया जा चुका है, अब उनकी श्रुतभक्ति के संबन्ध में दो शब्द लिखे जा रहे हैं। श्रावकों के लिए गुरुओं के पास जाकर आगमादि ग्रन्थोंका श्रवण नित्य आवश्यक कर्तव्य है । सामान्यतया पर्दूषण के दिनों में प्रतिवर्ष कल्पसूत्रकेवाचन का महोत्सव यहां बड़ी भक्ति पूर्वक किया जाता है। बड़े उपाश्रय से गुरुके पास कल्पसूत्रजी को अपने घर लाकर रात्रिजागरण करके दूसरे दिन राज्य की ओरसे आये हुए हाथी पर सूत्रजी को विराजमान कर वाजिन और हाथी, घोड़ा, पालकी आदिके साथ बड़े समारोह से उपाश्रय में लाकर सूत्र श्रवण करते हैं। इस उत्सव के लिए १३ गुवाड़ में क्रमशः प्रत्येक गुवाड़ की वारी निश्चित की हुई है।
"Aho Shrut Gyanam"