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बीकानेर जैन लेख संग्रह
बी का ने र की बृहत् झानभण्डार (बड़ा उपासर)
( २५३८)
शिलापट्ट पर श्री महोपाध्याय दानसागरादि पुस्तकभण्डार शिलपट्ट सं० १९५९ चै (?) सु । १ (?) १ भण्डार के सब ग्रन्थों का एक बड़ा सूचीपत्र है, जिसको सब कोई देख सकते हैं ॥ २ यदि कोई घर ले जाकर पुस्तक देखना चाहे तो पुस्तक का कुछ ही अंश दिया जावै पुरी पुस्तक किसी को नहीं दी जावेगी और दिये हुए पत्र पीछे आने पर दूसरे दिये जा सकेंगे। ३ भण्डार से पुस्तक परिचित पुरुषों को ही दी जावेगी ले जाने वाला ७ दिन से अधिक अपने पास पुस्तक नहीं रख सकेगा॥४॥ नकल उतारना चाहै तो यहाँ ही उतार सकता है पुस्तक को हिफाजत से रक्खे । ५ यदि ले जाने वाला और लिखने वाला बिगाड़ दे तो कीमत उससे ली जावेगी और ग्रन्थ भी उसको नहीं दिया जावेगा ॥६॥ ग्रन्थ देने के समय वा लेने के समय रजिष्टर में लिखा जायगा ॥७॥ ग्रन्थ देने-लेने का अधिकार संरक्षक को ही होगा। यह ज्ञानभण्डार उ। श्री हितवल्लभगणि स्थापितः ॥
धातु प्रतिमाओं के लेख ॥
(२५३९ )
श्री चन्द्रप्रभादि पश्चतीर्थी ॥ सं० १५७६ वर्ष वैशा० सु० ६ सोमे अहम्मदनगर वास्तव्य श्रीश्रीमाल ज्ञातीय ब० मयगल भा० माइणदे सु० ब० शहदत्तकेन भा० ललतादे सु० लाला लटकण जोधा प्रमु० कुटंब युतेन स्व श्रेयसे श्री चन्द्रप्रभु स्वामि बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृद्ध तपा पक्षे श्रीलब्धिसागरसूरि पट्टे श्रीधनरत्नसूरि भट्टा० श्रीसौभाग्यसागरसूरिभिः ॥
(२५४०)
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी ||सं० १५२४ वर्षे मा० वा बद २ सोम ऊ० भ० गोत्रे सा० सालिग भा० राजतदे पु० मा० जेसिंघ श्रावकेण श्रीआदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ।
उ. श्रीजयचन्द्रजी के ज्ञानभण्डार में
अष्टदलकमलाकार अथ शुभ संवत्सरेऽस्मिन नृपति श्री विक्रमादित्य राज्यात् १८९५ वर्षे मासोत्तम मासे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे पंचम्यां तिथौ चन्द्रवासरे रेवती नक्षत्रे श्री बृहत् खरतर गच्छाधीश युगप्रधान भट्टारक श्री श्री श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः विजयराज्ये श्री मागरचन्द्रसूरि शाखायां पं । प्र। श्री चतुरनिधान जो तशिष्य पं० । प्र.1 श्रीचन्दजी तस्य शिष्य पं० ईश्वरसिंहेन आल्म पुण्यार्थ अष्टदलकमल कारापिते श्री पिंडनगर मध्ये । श्री शुभ । श्री पातसाइजी रणसिंहजीराज्ये। ..
"Aho Shrut Gyanam'|