Book Title: Bikaner Jain Lekh Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta
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बीकानेर जैन लेख संग्रह श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
( २८३६ ) संवत १५०७ सीहमल भार्या चुगी प्रणमति ।
(२८३७ ) संवत् १५७६ वर्षे मार्गसिर सु० ५ शुक्र श्री श्रीमाल ।
(२८३८ ) श्री मूलसंघ भ० श्री शुभचंद्र रो पह ... ...
( २८३९ ) सं० १६६४ वर्ष जे०व० ३ रात्रासति ।
( २८४०)
संवत् १२२६ श्री अमृतधर्म स्मृति शाला
(२८४१)
शिलालेख ___ श्री सिद्धचक्राय नमः ॥ श्री वाचनाचार्य पद प्रतिष्ठा गणीश्वरा भूरि गुणैर्वरिष्टा । सत्य प्रतिज्ञाऽमृतधर्म संज्ञा जयन्तु ते सद्गुरवोः गुणज्ञाः ॥१॥ गणाधिप श्री जिनभक्तिसूरि प्रशिष्य संघात सुविश्रुतानां । येषाजजिहि श्री मति वृद्ध शाखे ऊकेश वंशे जनि कच्छ देशे ।।२।। भट्टारक श्री जिनलाभसूरयः श्रीयुत प्रीत्यादिम सागराश्चये आसन सतीर्था किल तद् विनेयताः मवाप्ययैः प्राप्तमनिन्दीतं पदं ॥३॥ शत्रुजयाद्युत्तम तीर्थ यात्रयोः सिद्धान्त योगोद्वहन हारिणाः संवेग रंगा द्रित चेतसा पुनः पवित्रितं यैर्निज जन्म जीवितं ।४। जिनेन्द्र चैत्य प्रकरो मनोरमो वरौ यः हेम्र कलशं विराजितः व्यधायि संघेन च पूर्वमण्डले येषां हितेषा मुपदेशतः स्फुटम् ।। प्रभूतजन्तु प्रतिबोध्ययः पुनः स्वर्ग गता जैसलमेरु सत्पुरे। समाधिना चन्द्र शराष्ट भूमिते संवत्सरे माध सिता. ष्टमी तिथौ ।६। स्थानांग सूत्रोक्त वचानुसारा द्विज्ञायते देवगतिस्तु येषां । यतो मुखादात्म विनिर्गमोभूत् साक्षात् सुविज्ञान भ्रितो विदंति । एवं विधाय श्री गुरवः सुनिर्भरं कृपा पराः सर्व जनेषु साम्प्रतं । क्षमादिणि कल्याण प्रति स्वयं प्रमोदक द्राग ददतु स्वदर्शनम् ।८। इत्यष्टकम् ।। संवत् १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ महाराउल श्री मूलराजजी विजयि राज्ये । भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिजी धर्मराज्ये श्रेयार्थ निर्मापिता क्षमाकल्याण गणिभिलिखिताक्षर धोरणी उत्कीर्ण शिव दानेन सूत्रधारेण हारिणी ॥१॥प विवेकविजयो नमति श्री गुरूत् ।।
"Aho Shrut Gyanam"

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