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[ 0 ] ५ फुट में चित्र है और ४ फुट में विज्ञप्ति लेख लिखा हुआ है। प्रथम चित्रों का विवरण देकर फिर लेख का विवरण दिया जा रहा है-
सर्व प्रथम नवफण मंडित पार्श्वनाथ जिनालय का चित्र है। जिसके तीन शिखर है । ये उत्तुंग शिखर लंब गोलाकृति हैं । मध्यवर्ती शिखर ध्वज- दंड मंडित है। परवर्ती दूसरे चित्र में सुख- शय्या में सुषुप्त तीर्थंकर माता और तद्दर्शित चतुर्दश महास्वप्न तथा उपरि भाग में अष्टमांगलिक चित्र बने हुए हैं। तत्पश्चात् महाराजा का चित्र है जो संभवतः बीकानेर नरेश जोरावर सिंहजी होंगे, जिनका वर्णन विज्ञप्तिपत्र में नीचे आता है। महाराज सिंहासन पर बैठे हुए हैं और हाथ में पुष्प धारण किया हुआ है । उनके पृष्ट भाग में अनुचर चंवर बींज रहा है और सन्मुख जाजम पर दो मुसाहिब ढाल लिये बैठे हैं। इसके बाद नगर के चौहटे का संक्षिप्त दृश्य दिखाया गया है । चौरस्ते के चारों ओर चार चार दुकानें हैं जिनमें से तीन रिक्त हैं । अवशेष में पुरानी बीकानेरी पगड़ीधारी व्यापारी बैठे हैं। जिन सबके लम्बी अंगरखी पहनी हुई है। दुकानदारों में लेखधारी, तराजूधारी, व गांधी आदि धन्धेवाले दिखाये गये हैं। इसके बाद का चित्र जिन्हें यह विज्ञप्ति लेख भेजा गया है उन श्रीपूज्य “जिनभक्तिसूरिजी " का है, जो सिंहासन पर विराजमान हैं, पीछे बँवरधारी खड़ा है, श्रीपूज्यजी स्थूलकाय हैं । उनके सामने स्थापनाचार्य तथा हाथ में लिखित पत्र है । वे जरी की बूटियोंवाली चद्दर ओढ़े हुए व्याख्यान देते हुए दिखाये गये हैं । सामने तीन श्रावक दो साध्वियां व दो श्राविकाएँ स्थित हैं। पूठिये पर चित्रकार ने श्रीपूज्यजी का नाम व इस लेख को चित्रित करानेवाले नन्दलालजी का उल्लेख करते हुए अपना नामोल्लेख इन शब्दों में किया है :
'सबी भट्टारकजी री पूज्य श्री श्री जिनभक्तिजी री छै । करावतं वणारसजी श्री श्री नन्दलालजी पठनार्थ । ॥ ८० ॥ मथेन मखैराम जोगीदासोत श्री बीकानेर मध्ये चित्र संजुक्ते ॥ श्री श्री ॥' उपर्युक्त लेख से चित्रकार जोगीदास का पुत्र अखैराम मथेन था और बीकानेर में ही विद्वद्वर्य नन्दलालजी की प्रेरणा से ये चित्र बनाये गये सिद्ध हैं । तदनन्तर लेख प्रारम्भ होता है:प्रारम्भ के संस्कृत श्लोकों में मंगलाचरण के रूप में आदिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर भगवान की स्तुति एवं वंदना करके १४ श्लोकों में राधनपुर नगर का वर्णन है । फिर ८ श्लोकों में जिनभक्तिसूरिजी का वर्णन करके गद्य में उनके साथ पाठक नयमूर्त्ति पाठक राजसोम, वाचक पूर्णभक्ति, माणिक्यसागर, प्रीतिसागर, लक्ष्मीविलास, मतिविलास, ज्ञानविलास, और खेतसी आदि १८ मुनियों के होने का उल्लेख किया गया है, फिर बीकानेर का वर्णन कर महाराजा जोरावरसिंह का वर्णन गद्यमें करके दो पद्य दिये हैं । फिर नगर वर्णन के दो श्लोक देकर बीकानेर में स्थित नेमिरंगगणि, दानविशाल, हर्षकलश, हेमचन्द्र आदि की वंदना सूचित करते हुए उभय ओर के पर्वाधिराज के समाराधन पूर्व प्रदत्त व प्राप्त समाचार पत्रों का उल्लेख किया है । तदनन्तर विक्रमपुर के समस्त श्रावकों की वंदना निवेदित करते हुए वहां के प्रधान व्याख्यान में पञ्चमांग भगवतीसूत्र वृत्ति सहित व लघु व्याख्यान में शत्रुंजय महात्म्य के
"Aho Shrut Gyanam"