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। १०३ । पल्लू की दो जैन सरस्वती-मूर्तियां सरस्वती मूर्ति की ऊँचाई ३ फुट ५ इंच और सपरिकर ठीक ४ फुट ८ इंच है। परिकर में उभयपक्ष में दो स्तम्भ, तदुपरि तोरण अवस्थित है। परिकर में स्तम्भोपरि कोण, जो तीन श्रेणियों में विभाजित है, मध्यवर्ती स्तंभ में चार-चार देवियां विराजमान हैं। जिनकी मूर्तियां भी सपरिकर, उभय पक्ष में स्तंभ और ऊपर तोरण दिखाया गया है । इन सब के दो-दो हाथ हैं। मुद्रा लगभग, सबकी एक समान है। वाहन व आयुध भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ! बांयां पैर पृथ्वी पर रखा हुआ, दाहिना पैर बांये पैर की पिण्डुली पर रखे हुए वो अपने-अपने वाहन पर विराजमान है। केशपाश सबके संवारे हुए और जूड़ा बांये तरफ चला गया है। नीचे दाहिने से प्रथम मूर्ति के, सांप बाहन और बांये हाथ में कुछ छबड़ी जैसा पात्र प्रतीत होता है, दाहिने हाथ में सांप सा मालूम होता है। दूसरी के पुरुष का सा वाहन और दाहिने हाथ में अस्पष्ट वाद्य, बायें हाथ में गोल ढाल जैसी वस्तु दिखाई देती है। तीसरी मूर्ति का वाहन वृषभ ? और दाहिने हाथ में गदा, बायें हाथ में पहले जैसा ढक्कनदार पात्र धारण किया हुआ है। चतुर्थ मूर्ति के शायद भैसे जैसा वाहन और हाथ में वन धारण किया है इन चारों सतोरण देवियों की बीच-बीच में बंधनी गोलबंधी हुई है और कनडि में लंबी पत्तियां बनी है इसके उभय पक्ष में नीचे दोनों तरफ कतलिए। ऊपर की खड़ी हुई परिचारिका स्तंभगत मध्यवर्ती दोनों देवियों के उभय पक्ष में है जिनके तूर्णालंकार कटिबंध व कमर में लटकता हुआ कंदोला बना हुआ है। हाथों में कमंडलु, कमलनाल, वन इत्यादि धारण किये हुए हैं। जटाजूट सबके मस्तकोपरि किरीट जैसे शोभायमान है तीसरी देवीके उभय पक्ष में अलंकृत हाथी बने हुए हैं, जिनका आधा आधा शरीर देखने में आता है। गण्डस्थलोपरि एक पैर जमा कर सिंह या ग्रास खड़ा है। दूसरी तरफ के स्तम्भ के ऊपर भी इसी प्रकार की चार बैठी और चार खड़ी हुई मूर्तियां हैं जिनमें बैठी मूर्तियों का वाहन महिष ? मयूर, वेदिका, हाथी व नीचे से अभय मुद्रा, पात्र, गदा पात्र नागपास ? और उसी प्रकार के आयुध हैं उभयपक्ष स्थित देवियां भी नाना ढाल मुद्गरादि आयुध लिये खड़ी हैं।
तोरण के उभय पक्ष में स्तम्भों के ऊपर कायोत्सर्ग ध्यानस्थ अर्हन्तबिंब खड़े हैं जिनके पहनी हुई धोती का चिह्न खूब स्पष्ट है इनके सार्दूलसिंह मुख के पास से निकली हुई कबाणी से सेमीसर्किल में तोरण बना है जिसके मध्य में उभय पक्ष स्थित स्तम्भों वाले पाले में फिर कायोत्सर्ग मुद्रा में अर्हन्त प्रतिमा है। कबाणी के ऊपर दोनों तरफ चार-चार पुरुष एवं एक-एक स्त्री की मूर्ति हैं जिनका एक-एक पैर स्पष्ट दिखाई देता है दूसरा पैर जंघा तक है बाकी कबाणी के पृष्ठ भाग में हैं। पहला पुरुष दाहिने हाथ की दो अंगुली दिखा रहा है, बायें हाथ को ऊँचा किया हुआ है। दूसरा व्यक्ति हाथ की दो अंगुली जमीन से स्पर्श करता है, तीसरे के हाथ में प्याले जैसा पात्र है, चौथी स्त्री है जिसके हाथ में लम्बा दण्ड है, पांचवां पुरुष दोनों
"Aho Shrut Gyanam"