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[ १०५ ] में पहने जाने वाली चांदी की चूड़ से सर्वथा अभिन्न है। उसके आगे गुजरी और तीखी बंगडी जैसे कंकण पहिने हुए है। हाथों में पहने हुए हथसांकला आजकल की तरह विकसित नहीं पर तत्कालीन प्रथा के प्रतीक अवश्य हैं। हाथ के अंगूठे और सभी अंगुलियोंमें अंगूठियां (मुद्रिकायें ) पहनी हुई हैं। अंगुलियों का विन्यास बौद्धकालीन मुद्राओं में चित्रित लम्बी और तीखी अँगुलियों जैसा है, इन्हें देखने से ज्ञात होता है कि नाखूनों को बढ़ाना भी आगे सुन्दरतामें शुमार किया जाता होगा, क्यों कि इन नखों के कारण आई हुई तीखाई सुकुमारता में अभिनव वृद्धि करने वाली दिखायी है। अंगुलियों के विन्यास में कलाकार ने गजब ढा दिया है। हथेली पर पद्म व सामुद्रिक रेखाएं तक दिखायी गयी हैं। दाहिने हाथमें माला व बांयें हाथमें कमण्डलु धारण किया हुआ है। दोनों का थोड़ा-थोड़ा अंश खण्डित हो गया है। हाथों की मजबूती के लिये पत्थर से संलग्न रखा गया है। दूसरे दोनों हाथ, भुजाओं के पीछे से ऊपर की ओर गये हैं, जिनमें चूड़ के अतिरिक्त दूसरे आभूषण विद्यमान हैं। दाहिने हाथमें बड़ा ही सुन्दर कलामय कमल-नाल धारण किया हुआ है जिस पर सुन्दर षोड़श दल कमल बना है। बायें हाथमें ६ इंच लम्बी सुन्दर ताडपत्रीय पुस्तक धारण की हुई है उभय पक्षमें काष्टफलक लगाकर तीन जगह तीन-तीन लड़ी डोरीसे ग्रन्थको बांधा गया है। कमर में स्थित कटिसूत्र खूब भारी व उसके झालर लटकण व मूघरे कई लड़े पुष्ट व मनोहर हैं जो तत्कालीन आर्थिक स्थितिकी उन्नतावस्था के स्पष्ट प्रतीक हैं ! पहिना हुआ वस्त्र (घाघरा या साड़ी) के सल इत्यादि नहीं है, खूब चुस्त दिखाया है ताकि वस्त्रोंके कारण अङ्गविन्यास में भद्दापन न आ जाय । कमर पर एवं नीचे, वस्त्र चिह्न स्पष्ट है नीचे घाघरे की कामदार मगजी भी है। वस्त्रको मध्यमें एकत्र कर सटा दिया है। पैरोंमें केवल पाजेब पहने हैं जो आजकल भी प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त पैरोंमें कोई आभूषण नहीं, सम्भवतः प्रतिमा के सौन्दर्य को कायम रखने के लिये नूपुर आदिको स्थान न दिया गया हो। पैरोंके अंगूठों में कुछ भी आभरण नहीं है। पैर उन्नत व सुन्दर हैं। अँगुलिए कुछ लम्बी हैं पर हाथोंकी भांति पेरोंके नाखून लम्बे नहीं, प्रत्युत मांसल है, क्योंकि ऐसा होने में ही उनकी सुन्दरता है । इसप्रकार यह सर्वाङ्ग सुन्दर मूर्ति कमलासन पर खड़ी है जिसके नीचे दाहिनी ओर गरुड़ और बांये तरफ वाहन रूपमें हंस अवस्थित है। सरस्वती मूर्तिके पृष्ठ भागमें प्रभामण्डल बड़ा ही सुन्दर बना हुआ है। उसके उपरिभाग में जिनेश्वर भगवान की पद्मासनस्थ प्रतिमा विराजमान है। सरस्वती के स्कन्ध प्रदेश के पास उभयपक्षमें दो पुष्पधारी देव अधरस्थित और अभिवादन करते हुए दिखाये गये हैं। जिनके भी कंकण, हार, भुजबन्द आदि आभूषण पहिने हुए एवं पृष्ठभाग में केशगुच्छ दिखाया गया है।
सरस्वती मूर्तिके उभय पक्ष में वीणाधारिणी देवियर्या अवस्थित है जिनका अंगविन्यास बड़ा सुन्दर, भावपूर्ण और प्रेक्षणीय है। वे भी ऊपरिवर्णित समस्त अलंकार धारण किये हुए हैं। कमर से पैरों तक लहरदार वस्रके चिह्न स्पष्ट हैं।
सरस्वती के पैरोंके पास दाहिनी ओर पुरुष व बांयी ओर स्त्री है जो सम्भवतः मूर्ति
"Aho Shrut Gyanam"