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[ ६३ दुकान, "दौलो तंबोली" की दुकान एवं कन्दोइयों के बाजार की इतर सभी दुकानें चित्रित हैं। परन्तु नामोल्लेख नहीं । दाहिनी ओर "रेवगांरी (ग) ली” फिर दुकानों की पंक्तियां हैं। आगे जाने पर धानमंडी आती है जहां ऊटों पर आमदानी हुए धान्य की छाटियां भरी हुई हैं। ग्राहक-व्यापारी क्रय-विक्रय करते दिखाए हैं। यहाँ भी सुरिजीके स्वागत में निर्मित प्रतोली दिखायी है। उभय पक्ष में दुकान-मकानों की श्रेणी विद्यमान है। आगे चलकर रास्ते के वायी
ओर फल-साग आदि वेचती हुई मालिने, रस्ता पसारी, दाहिने ओर बजाजों का रास्ता लिखा है। वहां भी आगे की तरह स्वागत दरवाजा बनाया है। कुछ दुकानों के बाद बोये तरफ "हमालों का रास्ता" फिर दोनों ओर दुकानें फिर “राजमंढी" आती है जहाँ विशाल मकान में जकात का दफ्तर बना हुआ है जिसमें राज्याधिकारी लोग कार्य व्यस्त बैठे हैं। ऊंटों पर आया हुआ माल पड़ा है, कहीं लदे ऊंट खड़े हैं, कांटे पर वजन हो रहा है, व्यापारी-प्रामीण आदि खड़े हैं। मंढी के पहिले दाहिनी ओर व्यापारियों का रास्ता एवं आगे चल कर बांये हाथ की ओर नाइयों की गली है। कुछ दुकानों के बाद दाहिनी ओर ऊन के कटले का रास्ता बांये ओर सिंघियोंके चौक का रास्ता एवं आगे जाने पर "कुंडियो मोदियों का" दाहिनी ओर एवं थोड़ा आगे बांयी ओर "घाटी का भैरू" आगे चल कर दाहिनी ओर मसालची नायौरी मंडी फिर दरजियों की गली, खैरातियों की दुकानें, दरजियों की गली के पास "नागोर री गाड्या रो अड" बतलाया है। खैरातियों की दुकानों के बाद रास्ता बाई ओर से दाहिनी ओर मुड़ गया है। यहाँ तक दोनों ओर की दुकानें एवं रास्ते में चलते हुये आदमी घुड़सवार आदि चित्रित किये गये हैं। रास्ते के दाहिनी ओर मांडपुरा बांये रास्ते पर भांडासरजी, लक्ष्मीनाथजी का मन्दिर दिखाते हुए सूरिजी के स्वागतार्थ सवारी का प्रारंभ होता है। सवारी में हाथी, घोड़े छडीदार, बंदूकची, नगारा-निसाण, श्रावकवर्ग दिखाते हुए श्री जिनसौभाग्यसूरिजी बहुत से यति एवं श्राविका, साध्वियों के साथ बड़े ठाट से पधारते हुए अंकित किए हैं। इसके पश्चात तम्बू डेरा चित्रित कर सूरिजीके पडाव का विशाल दृश्य दिखाया है इसमें सूरि महाराज सिंहासनोपरि विराजमान हैं। आगे श्रावक, यतिनिए श्राविकाएं पृष्ठ-भाग में यति लोग बैठे हैं, सन्मुख श्राविका गहूली कर रही है। पड़ाव के बाहर सशस्त्र पहरेदार खड़े हैं। इसके बाद लक्ष्मीपोल दरवाजा जहाँ से होकर सूरि महाराज पधारे हैं-दिखाया गया है। आजकल इसे शीतला दरवाजा कहते हैं ! यहाँ तक नगर के चित्र ५५ फुटकी लम्बाई में समाप्त हो गये हैं। इसके पश्चात विज्ञप्ति-लेखका प्रारंभ होता है।
विज्ञप्तिलेख संस्कृत भाषा में हैं प्रारंभ में ५, ११ श्लोक है फिर गद्य लेख है जिसमें सूरिजी के बंगदेशवर्ती मुर्शिदाबाद में विराजनेका उल्लेख करते हुए प्राकृत एवं राजस्थानी भाषामें लम्बी विशेषणावली दी गयी है । नदनन्तर संस्कृत गद्यमें पत्र लिखा गया है।
"Aho Shrut Gyanam"