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1 ८७ के निवासी लूणिया तुलसीदासजीकी पत्नी धनबाई के पुत्र थे, इनका जन्म सं० १७४६ और दीक्षा सं० १७५६ में हुई थी। उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणजी भी बीकानेर रियासतके केसरदेसर ग्राम के माल्हू गोत्रीय थे। इसी प्रकार मस्तयोगी ज्ञानसारजी जैगलेवासके सांड उद्यचन्द्रजीकी पत्नी जीवणदेवीके पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १८०१ में हुआ था दीक्षा और स्वर्गवास भी यहीं हुआ था। आज भी बीकानेरके दीक्षित कई साधु एवं साध्वियां विद्यमान हैं जिनमें श्रीविजयलक्ष्मणसूरिजी बीकानेरके पारख गोत्रीय है। ध्यान-योगी श्रीमोतीचन्द्रभी भी लूणकरणसरके थे जिनका कुछ वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है।
सचित्र विज्ञप्तिपत्र चातुर्मास के निमित्त आचार्यों को आमन्त्रित करने के लिए संघकी ओर से जो वीनतिपत्र जाता वह भी विद्वतापूर्ण व इतिहास, कला, संस्कृति आदि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता था। एक तो सांवत्सरिक पत्र होता जिसमें पाराधन के समाचार होते दूसरा विज्ञप्ति-पत्र । प्रथम के निर्माता मुनिगण होते जो उसे संस्कृत व भाषा के नाना काव्यों में गुंफित कर एक खण्ड-काव्य का रूप दे देते और दूसरा चित्र-समृद्धि से परिपूर्ण होता था। बीकानेर से दिये गये ऐसे कई लेख मिलते हैं। चारसौ वर्ष पूर्व श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी को दिया हुआ पत्र प्राचीनता और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसके पश्चात् कतिपय पत्र धर्मवर्द्धन, ज्ञानतिलक आदि के काव्य व गद्यमय उपलब्ध हैं जो बीकानेर से भेजे गए थे उनमें बीकानेर नगर और तत्कालीन धर्मकृत्योंका सुन्दर वर्णन है जो श्रोजिनविजयजी ने सिंघी जैन ग्रंथमाला से प्रकाशित किये हैं।
सांवत्सरिक पत्रों में सर्वप्राचीन हमारे संग्रहस्थ श्रीजिनमाणिक्यसूरिजीको दिया हुआ पत्र है जो दयातिलकगणि, प्रमोदमाणिक्यगणि प्रभृति साधु संघने जैसलमेर भेजा था। इसका आदि भाग जिसमें विभिन्न विद्वत्ता पूर्ण छन्दों में चित्र काव्य द्वारा जिनस्तुति, गुरुस्तुति नगर वर्णनादि भाव रहे होंगे-४१ श्लोक सर्वथा नष्ट हो गये हैं। इसका चालीसवां श्लोक विजोरा चित्र एवं ४२ वा स्वस्तिक चित्र सा प्रतीत होता है। इन उभय श्लोकों के कुछ त्रुटित अक्षर अवशेष हैं । इसके पश्चात् गद्य में कादम्बरी की रचना छटा को स्मरण कराने वाली ७ पंक्तियाँ उल्लिखित हैं वे भी प्रायः नष्ट हो चुकी हैं।
इस पत्र से प्रतीत होता है कि उस समय जैसलमेर में श्री जिनमाणिक्यसूरि के साथ विजयराजोपाध्याय वा० अमरगिरि गणि, पं० सुखवर्द्धन गणि, पं० विनयसमुद्र गणि, पं० पद्म मन्दिर गणि, पं० हेमरङ्ग मुनि, पं० कल्याणधीर पं० सुमतिधीर, पं० भुवनधीर मुनि प्रमुख साधुमण्डल था। बीकानेर से दयातिलक गणि, प्रमोदमाणिक्य गणि, पं० वस्ताभृषि, पं० सत्यहंस गणि, पं० गुणरंग गणि, पं० दयारंग गणि, पं० हेमसोम गणि, पं० जयसोम (क्षुल्लक), ऋषि सीपा, भाऊ ऋषि, सहसू प्रमुख साधु संघने विनय संयुक्त वन्दना ज्ञापन करने व कुशल सम्वाद के पश्चात लिखा है कि
"Aho Shrut Gyanam