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के पुत्र थे, आपका जन्म बापेऊ में सं० १७८४ श्रावण सुदिमें हुआ था। आपके पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी बीकानेर के बच्छावत रूपचन्दजीकी पत्नी केसरदेवी से सं० १८०६ में कल्याणसर में जन्मे थे । खरतरगच्छकी वेगढ़ शाखामें श्रीजिनेश्वरसूरिजी के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिजी बीकानेर के बाफणा रूपजीकी पत्नी रूपादेवीके पुत्र थे ।
इसी प्रकार खरतराचार्य शाखाके स्थापक श्रीजिनसागरसूरि बीकानेरके बोथरा बच्छराज की पत्नी मृगादेवी की कुक्षीसे सं० १६५२ काती सुदि १४ को जन्मे थे। उनके पट्टधर श्रीजिनधर्मसूरिजी बीकानेर के भणशाली रिणमलकी भार्या रत्नादेवी के पुत्र थे, सं० १६६८ पोष सुदि २ को इनका जन्म हुआ था। इस शाखा में श्रीजिनयुक्तिसूरिजीके पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भा के रीहड़ भागचंदजीकी पत्नी भक्तादेवीके पुत्र थे । वर्त्तमान श्रीपूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भी बीकानेर रियासत के ही थे ।
पायचन्द्रगच्छके आचार्य जयचन्द्रसूरि बीकानेरके शंका जैतासाहकी पत्नी जयतलदेवी के पुत्र थे, इनकी दीक्षा बीकानेर में सं० १६६१ माघ सुदि ५ को हुई थी । इस गच्छके कनकचन्द्रसूरि बीकानेर -- दहीरवासके मुहणोत माईदासकी पत्नी महिमादेके पुत्र थे । भानुचन्द्रसूरि करमावासके भणसाली प्रेमराजकी पत्नी प्रेमादेवीकी कूक्षी से सं० १८०३ में जन्में थे उनकी दीक्षा सं० १८१५ वैशाख सुदि ७ को बीकानेर में हुई थी। इसी प्रकार लब्धिचन्द्रसूरि भी बीकानेर के छाजेड़ गिरधरकी पत्नी गोरमदेवीके पुत्र थे, इनका जन्म सं० १८३५ श्रावण वदि में हुआ था । अंतिम आचार्यश्री देवचन्द्रसूरि भी बीकानेर राज्यके वैद गोत्रीय थे ।
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गौरी लंका गच्छ कल्याणदासजी राजलदेसर के सुराणा शिवदासजीकी पत्नी कुशलाजी पुत्र थे और आप बीकानेर में दीक्षित हुए। नेमिदासजी भी बीकानेर के सुराणा रायचन्दजी की पत्नी सजनके पुत्र थे । पूज्य सदारंगजी कालूके सुराणा भागचन्दकी पत्नी यशोदाके और पूज्य जीवणदासजी पड़िहारा के चोरड़िया वीरपालकी पत्नी रतनादेवीके पुत्र थे । पूज्य भोजराजजी राहसरके बोथरा जीवराजकी धर्मपत्नी कुशलाकी कुक्षीसे उत्पन्न हुए थे । पूज्य लक्ष्मीचन्द्रजी नौहर के कोठारी जीवराजकी स्त्री जयरंगदेवी के पुत्र थे ।
कंवलागच्छके कई आचार्य बीकानेर के निवासी थे पर उस गच्छकी पट्टावलीमें उनके जन्म स्थानादिक का पता न होने से यहां उल्लेख नहीं किया जा सका ।
आचाय के अतिरिक्त सैकड़ों यति-मुनियोंकी दीक्षा यहां होनेका श्रीपूज्योंके दफ्तरों आदि से ज्ञात है पर उनके जन्म स्थानादिका निश्चित पता न होनेसे एवं विस्तार भयसे निश्चितरूप से ज्ञात ४|५ प्रमुख महापुरुषोंका ही यहां निर्देश किया जा रहा है ।
युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के प्रथम शिष्य और महोपाध्याय समयसुन्दरजीके गुरु श्री सकलचन्द्रजी गणि बीकानेरके रोहड़ गोत्रीय थे और उनकी दीक्षा भी सं० १६१३ में बीकानेर मैं श्रीजिनचन्द्रसूरिजी क्रियोद्धारके समय हुई थी । इनके गोत्रवालोंके बनवाई हुई आपकी पादुका नाल में विद्यमान है। आत्मार्थी महापुरुष श्रीमद् देवचंद्रजी बीकानेर के निकटवर्ती ग्राम
"Aho Shrut Gyanam"