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[ 8 ] श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक श्रीदीन जनोद्धारक श्री जीवदया प्रतिपालक श्री जीवाजीवादि नवतत्त्व विचारक सम्यक्त्त्वमूल स्थूल द्वादशवत धारक श्री पंच (पर) मेष्टि महामंत्र स्मारक सुश्रावक पुण्य प्रभावक संघ मुख्य स श्री समस्त लघु वृद्ध श्री संघ योग्यं सदा धर्मलाभ पूर्वक समादिशंति श्रेयोत्र धर्मोपदेशोयथा । धन्नाते जिय लोए गुरु वयणं जे करंति पच्चक्खं । धन्नाणविते धन्ना कुणंति देसंतर गयाणं ॥१॥ इत्यादि धम्मोपदेश जाणी चित्त नइ विषे विवेक आणी धर्मोद्यम करतां लाभ छै॥ तथा प्रथम चौमास करी...मध्ये अत्र थी बिहार करता हता परं श्री संघइ अनइ को० श्री जिणदासजो श्री नयणसी जी घणउ आदर करी बीजी चउमास राख्या ॥ हिवइ अत्र सुखइ रहता साधांनइ तप प्रमुख करावतां श्री जिनालय स्नात्र पूजा अनुमोदतां श्री भगवतीसूत्र वृत्ति खणइ वाचर्ता श्री संघनइ धर्म नइ विषइ प्रवर्त्तावतां सर्व पर्व राजाधिराज श्री पर्यषणापर्व आया तत्रोपन्न विवेकातिरेक च्छेक गोलवच्छो साह नयणसी श्री संघ समक्ष क्षमाश्रमण पूर्वक श्री कल्प पुस्तक आपणइ घरे ले जाई रात्रि जागरण करावी प्रभातइ महामहोत्सवइ गजारूढ़ करी अम्हनइ आणी दीधउ। अम्हेपिण नव वाचनायइ स प्रभावनायइ वाच्यउ। तत्र दानाधिकारे आषाढ़ चौमासा ना पोसहता ८५१ नइ को० भगवानदास नालेर दीया श्रावण वदि
४ ना पोसहता २२५ नइ म० उत्तमचंद नालेर दिया। श्रावण सुदि १४ ना पोसहता ३४२ नई फलवधिये रामचन्द नालेर दिया। भाद्रवावदि ८ पोसहता ४२५ नइ पा० कपूरचन्द नालेर दिया। अठाइना उपवासीता ५२५ नइ बो० नयणसी नालेर दिया। कल्पनापोसहता ११५१ नइ सा० रायमल्ल नालेर दिया। पोसहीता उपवासीता १२१३ नइ मा० अमृत नालेर दिया बेलाइता ३२५ नई पांचे श्रावके नालेर दीया तेलाइता २०५ नइ तीने श्रावके नालेर दिया। संवत्सरी ना पोसहता १५५१ नइ पुस्तकमाही गो० नयणसी मोदके भक्ति कीधी। पाखी सर्व चालइ छइ बीजा ही दान पुण्य घणा थया शील पिण घणे पाल्यउ । तपोऽधिकारे साध्वी अमोली छम्मासी तप १ कीधउ। मासक्षमण ७ पक्षक्षमण १५१ अट्ठाइ ४२। छट्ट अट्ठम घणाथया भावना पिण भावी । इत्यादि पर्वाराधन स्वरूपजाणी अनुमोदिज्यो आपणाजणावेज्यो तथा श्री संघ मोटा श्रावक छउ गुरु गच्छना अंतरंग रागी छउ श्री खरतर गच्छनी मर्यादा ना राखणहार छउ जेहवी धर्म सामग्री चलावउ छउ तिण थी विशेष पणइ चलावेज्यो प्रस्तावइ कागल समाचार देज्यो संवत् १७२८ वर्षे मगसिर सुदि १० शुक्रवासरे। श्रीरस्तुः ॥ श्री
उपाध्यायाजी रो धर्मलाभ वाचज्यो श्री भावप्रमोद रो धर्मलाभ जाणेज्यो। तथा भोजिग शिवदास वाराइत छै सखर छह आपणाइत इण सेती घणी राखेज्यो।
इसी प्रकार सं० १७७६ के भाद्रवा सुदि १४ को बीकानेर से श्री जिनसुखसूरिजीने फलौदी के संघ को पत्र दिया इसमें यहो के श्रावकोंके धर्म कृत्यका निम्नोक्त वर्णन है :
"हिवै अत्र ठाणे २१ साधु साध्वी १६ सुखै रहतां श्री संघने धर्मकरणी नै विषै प्रवर्त्तावतां श्रीजिनालये स्नानपूमा अनुमोदता श्री पन्नवणा सटीक प्रभाते वखाणे वाचतां श्रीपर्युषण पर्व आव्यातत्रोत्पन्न विवेकातिरेक च्छेक छाजहड़ साह कपूरचन्दै श्रीसंघ समझे क्षमाश्रमणपूर्वक
"Aho Shrut Gyanam"