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[ ८०] श्रीकल्प पुस्तक आपणै घरे ले जाई रात्रि जागरणादि करी प्रभातै घणे आडम्बर करी अम्हनै आणी दीधौ। अम्हे पिणश्री संघ समक्ष १३ वाचनायै सप्रभावनायें बाच्यौ तत्र दानाधिकारं श्री आषाढ़ चौमासी थी मांडी सर्व पाखी तथा आठमि रा पोसीता उपवासीता १५१९२१५ थायै तिणां सर्व नै नालेर तथा चिणी खांडरी भक्ति कीधी श्री संवत्सरी रा पोसीहता १२५१ थया तिणाने पुस्तकग्राहीयै मोदके भक्ति कीधी। संवत्सरीदान पा० अर्जनजी गो० धर्मसीयै जुआ जूआ नालेर दीधा पडिकमीता मनुष्य ४५१ थया बीजाही दान पुण्य विशेषै भला थया"
ये दोनों पत्र खरतर गच्छीय भट्टारक शाखाके श्रीपूज्यों के हैं अतः इसमें उल्लिखित धर्मानुष्ठान केवल उन्हींके आज्ञानुयायी संघका ही समझना चाहिये इनके अतिरिक्त बीकानेर में जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है खरतर-आचार्यशाखा, उपकेशगच्छ, लौकागच्छ, पायचन्द गच्छ और तपागच्छके संघका धर्मानुष्ठान इससे अतिरिक्त समझना चाहिए। कमसे कम इस सभी गच्छोंका भट्टारक शाखाके समकक्ष मानें तो भी सं० १७२८ में पौषध करनेवालों की संख्या ३००० से ऊपर हो जाती है। इससे सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करनेवालों की संख्या ५-७ गुनी तो अवश्य ही होगी अतः उससमय यहाँ जैनोंको संख्या बहुत अधिक सिद्ध होती है।
आचार्य पदोत्सवादि बीकानेर के धर्मानुरागी श्रावकोंने अवसर पाकर गुरुभक्ति में भी अपना सद् द्रव्य-व्यय करने में कसर नहीं रखी। उन्होंने आचार्यों के पदोत्सव, चातुर्मास कराने प्रवेशोत्सव आदि विविध प्रकारके गुरुओं की सेवा एवं बहुमानमें लाखों करोड़ों रुपये खर्च किये हैं जिन पर थोड़ी सी उड़ती नजर यहां डाली जा रही है।
कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध में लिखा है कि श्रीजिनसमुद्रसूरिजीके पट्टपर श्रीजिनहंससूरिजीको श्री शान्तिसागरसूरिजीके हाथसे आचार्यपद दिलाया। सं०१५५५ ज्येष्ठ शुक्ला को यह उत्सव मन्त्रीश्वर कर्मसिंहने एक लाख रुपया व्यय करके किया। सं० १६१३ मितो चैत्र वदि ७ को मंत्रीस्वर संग्रामसिंह बच्छावतने युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीका क्रियोद्धारोत्सव बड़े समारोहसे प्रचुर द्रव्य व्यय कर किया।
सं० १६४६ में युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीका चातुर्मास लाहोरमें सम्राट अकबरके आमन्त्रण से हुआ। सम्राटने सूरिमहाराजको "युगप्रधान" पद और उनके प्रधान शिष्य वा० महिमराजजीको आचार्य पद देकर उनका नाम श्रीजिनिसहसूरि रखनेका निर्देश किया और मन्त्रीश्वरको आज्ञा दी कि जैन विधि के अनुसार इस महोत्सवको बड़े समारोहसे संपन्न करो! सम्राटकी आज्ञा पाकर मन्त्रीश्वर बीकानेर नरेश महाराजा रायसिंहजीसे मिले। उनकी सम्मति और जैन संघकी आज्ञा लेकर महोत्सवकी तैयारियां करने लगे। मिती फाल्गुन वदि १० से अष्टान्हिका महोत्सव मनाया गया। रात्रि जागरणमें धार्मिक गीत गाये गए। मन्त्रीश्वर
"Aho Shrut.Gyanam"