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श्रीजिनसिंहसूरिजी को वन्दन किया । यहाँ मेड़ता के संघपति आसकरण के संघके साथ सामिल हो गए। वहाँसे दुगाड़, खांडप, भमराणी, सोवनगिरि, सीणोद्रह, साणइ सोधोड़इ होकर संघ सिरोही पहुंचा फाल्गुन चौमासा कर हणाद्रह होकर आबू, अचलगढ़ तीर्थकी यात्रा की । वहाँसे मिलोइ, दांतीवाड़ा, सिद्धपुर के १० मन्दिर, लालपुर में शान्तिनाथ, महिसाणा, पानसर, कल्लोल, सेरिसा (लोडणपार्श्व ), के जिनालयोंका वन्दन करते हुए अहमदाबाद पहुंचा वहाँ १०१ जिनालयों में चैत्यवंदना कर वहाँके संघके साथ फतैबाग, चावलकर, होकर शत्रुंजय पहुंचा !
सुदि १४ को तलहटी की यात्रा कर चैत्रीपूनम के दिन गिरिराज पर चढ़े । यात्रा के अनन्तर श्रीजिन सिंहसूरिजी ने संघपति आसकरण को 'संघपति' पद देकर माला पहिनाई । वहाँसे संघ बावती में स्थंभन पार्श्वप्रभु की यात्रा कर मेड़ता लौटा।
बीकानेर के श्रावकों के बनवाए हुए मन्दिर
बीकानेर निवासी श्रावकों ने तीर्थों पर भी बहुत से मन्दिर बनवाये थे। मंत्रीश्वर संग्रामसिंह ने श्री शत्रुंजय महातीर्थ पर मन्दिर बनवाया, इसका उल्लेख कर्मचन्द्र - मंत्रि-वंश-प्रबन्ध के २५१ वें श्लोक में है । इसी प्रकार मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र द्वारा शत्रुंजय और मथुरा में जीर्णोद्धार करवाने का श्लोक ३१३ में और श्लोक ३१७ में शत्रुंजय, गिरनार पर नये मंदिर बनवाने के लिए द्रव्य भेजने का उल्लेख है । फलौधी में श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्रीजिनकुशलसूरिजी स्तूप बनवाने का उल्लेख ३२७ वें श्लोक में आता है। मंत्रीश्वर ने दादासाहब के चरण एवं स्तूप मंदिर कई स्थानों में बनवाए थे जिनमें अमरसर, सांगानेर, सधरनगर, तोसाम, गुरुमुकुट, राणीसरफलौदी में दादासाहब के चरण स्थापित करने का और पाटण में मंत्रीश्वर की प्रेरणा से दादासाहब के चरण स्थापित करने का उल्लेख पाया जाता है। फलौदी, अमरसर, पाटण और सांगानेर के चरणों के लेख इस प्रकार हैं-
"सं० १६४४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने सोमवासरे फलवर्द्धिनगर्यां श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका मन्त्री संग्राम पुत्रेण मन्त्री कर्मचन्द्र ेण सपुत्र परिवारेण श्रेयोर्थ कारापितं "
"सं० १६५३ वर्षे वैशाखाद्य ५ दिने श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुके कारिते अमरसर वास्तव्य श्रीसंघेन ज्ञाता । मूल स्थूत प्रारत करता मंत्री कर्मचंद्रः श्री बोम्ल: मेचः पंडि श्रांनियांश्च सोणसानं महद्य चेष्ठितम् युगे अक्षेः" *
“श्वस्ति श्री संवत् १६५३ मार्गशीर्ष सित नवमी दिने शुभवासरे । श्री मन्मंत्रिमुकुटोपमान मंत्र कर्मचन्द्र प्रेरित श्री पत्तन सत्क समस्त श्रीसंघेन कारिता श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां स्तूप प्रतिष्ठितं विजयमान गुरु युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वंद्यमान पूज्यमान सदा कुशल उदयकारी मयतु श्रीसंघाय || || "
*यह लेख गौरीशङ्करसिंह चन्देल ने चांदके सितम्बर १९३५ के अहमें प्रकाशित किया था । तदनुसार यहाँ उद्धृत किया गया है, लेख बहुत अशुद्ध है ।
"Aho Shrut Gyanam"