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हनुमानगढ़ (भटनेर) यह भी उपर्युक्त रेलवेका स्टेशन है। बीकानेरसे सं० १४४ माइल है इसका पुराना नाम भटनेर (भट्टिनगर) है यहां बड़ गच्छकी एक शाखाकी गद्दी थी। यहां किलेके अन्दर एक प्राचीन मन्दिर है। यहांकी कई प्रतिमाएं बीकानेर के गंगा गोल्डन जुबिली म्यूजियममें रखी हुई हैं। कवि उदयहर्षके स्तवनानुसार सं० १७०७ में यहां श्री मुनिसुव्रत स्वामीका मन्दिर था ! इस समय यहां श्री शान्तिनाथजीका मन्दिर है, मूलनायकजीकी सपरिकर प्रतिमा सं० १४८६ मि० मिगसर सुदि ११ को प्रतिष्ठित हैं, मन्दिरके पास ही उपाश्रय भग्न अवस्थामें पड़ा है। यहाँ ओसवालोंके केवल ७ ही घर है।
सतरहवीं शतीके वड़ गच्छीय सुकवि मालदेव के भटनेर आदिनाथादि ६ जिनस्तवन के अनुसार उस समय मूलनायक आदिनाथजी की सपरिकर मूर्ति थी। जिसमें दोनों ओर दो काउसगिया (कार्योत्सर्ग मुद्रा-खड़ी खड़गासन ) मूर्ति थी। अन्य मूर्तियों में अजितनाथ, संभवनाथ, श्रेयांसनाथ, शान्तिनाथ एवं महावीर की थी। बीकानेर म्यूजियम में अजितनाथ, संभवनाथ व महावीर की प्रतिमाएं सं० १५०१ में प्रतिष्ठित हैं । विशेष संभव है कि वे स्तवनोक्त ही हों। आदिनाथ की मूर्ति म्यूजियम में सं० १५०१ की व भटनेर में सं० १५६६ की है। संभवतः शान्तिनाथजी की मूर्ति भटनेर में अभी मूलनायक है वही हो पर श्रेयांसनाथजी की मूर्तिका पता नहीं चलता।। ___ अव यहाँ उन स्थानों का परिचय दिया जा रहा है, जहाँ पूर्वकाल में जैन मन्दिर थे पर वर्तमान में नहीं रहे।
देसलसर यह ग्राम देशनोक से १४ मील है। यहाँ मन्दिर अब भी विद्यमान है पर ओसवालों के घर न होनेसे यहां की प्रतिमाएँ और पादुकायें नौखामंडीके नव्य निर्मित जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित की गई है।
सारूँडा यह स्थान नोखामंडी से १०-१२ मील है। सं० १६१६ और १६४४ की शत्रुजय चैत्य परिपाटी में श्री ऋषभदेव भगवान के मन्दिर होनेका उल्लेख पाया जाता है। पर वर्तमान में उसके कुछ भग्नावशेष ही रहे हैं।
पूगल यह बहुत पुराना स्थान है। सं०१६६६ के लगभग कल्याणलाभके शिष्य कमलकीर्ति और सं० १७०७ में ज्ञानहर्ष विरचित स्तवनों से स्पष्ट है कि यहाँ श्री अजितनाथस्वामी का मन्दिर था। पर इस समय यहां कोई मन्दिर नहीं है।
"Aho Shrut.Gyanam"